त्रेता युग का वह दौर था जब जामवंत ने हनुमान को उनकी अदभुत शक्तियों का स्मरण कराया और उन्होंने समुद्र को लांघ कर अशोक वाटिका में सीता जी का पता लगाया तथा लंका दहन किया। राजनेताओं का दवाब कहे या सत्ता का प्रभाव की चुनावी आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने वाले नेताओं को मंद रफ्तार के साथ सोचते, समझते और कलम उठाते हुए नोटिस का कागज थमा मौन बैठ जाने वाले निर्वाचन आयोग को वर्तमान दौर में सर्वोच्च अदालत ने उनकी शक्ति का स्मरण कराया तो शिथिल पड़े संस्थान में मानो ऊर्जा का करंट ही दौर पड़ा। चुनाव आयोग ने एक-एक कर पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री तक पर सख्त तेवर दिखाते हुए बदजुबानी करने वाले नेताओं को याद दिलाया की इनके बोल न केवल जहरीले हैं बल्कि लोकतंत्र, संविधान और देश के लिए खतरनाक भी और फिर जुबान को पकड़ कर उस पर मेड इन आयोग वाला ताला जड़ दिया। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को भी कहना पड़ा कि लगता है, चुनाव आयोग को उनकी शक्तियां वापस मिल गई हैं।
देश की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के बनारस के पास के गांव लमही में जन्मे कबीरदास जी ने कहा था ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय। यूपी के चार बड़े नेता मेनका गांधी, आजम खान, मायावती और योगी आदित्यनाथ कबीर की इस वाणी को आत्मसाध कर लेते तो आज चुनाव आयोग को उनकी बोलती बंद नहीं करनी पड़ती। समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान पर भाजपा नेता जया प्रदा को लेकर की गई टिप्पणी के बाद चुनाव आयोग ने उन्हें 72 घंटे तक प्रचार करने से रोक दिया है। वहीं योगी आदित्यनाथ द्वारा अली और बजरंग बली वाले बयान पर भी आयोग ने उनके 72 घंटे तक प्रचार करने पर रोक लगा दी। महिला आरक्षण की मांग वैसे तो सालों से उठती रही है लेकिन आयोग ने मायावती और मेनका गांधी के प्रचार पर पहरा लगाते वक्त इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेते हुए दोनों को दी गई सजा में 48 घंटे का वक्त मुकर्र किया।
राजनेताओं द्वारा ऐसे बदजुबानी की कई कहानी है जब आचार संहिता का सिर्फ उल्लघंन ही नहीं किया गया बल्कि आचार संहिता और कानून को भाड़ में भेजने जैसे बोल बोलने से गुरेज नहीं किया गया। आजम खान द्वारा भाजपा नेत्री को लेकर दिए गए बयान भी यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि ऐसा आदमी भारत की संसद में बैठने का ख्वाब कैसे देखता है व औरत के सम्मान को तार-तार करने के बाद भी नैतिकता के वस्त्र उतार कर वोट मांगने निकल पड़ता है। जिसपर सारे लोग शर्मिंदा हैं उस आदमी को वोट बैंक की लालसा की वजह से अखिलेश यादव मुकुट की तरह माथे पर सजाएं बैठे हैं। मुसलमानों को वोटों का गणित समझाने की वजह से आचार संहिता उल्लंघन की दोषी मायावती ने गेस्ट हाउस कांड का दर्द झेला है और वो जानती हैं कि औरत की अस्मिता पर जब हमले होते हैं तो सबसे पहले उनकी भाषा ही असभ्य होती है लेकिन गठबंधन और वोट की लालसा ने मानो उनके स्त्रीत्व भाव को ताक पर रखने पर मजबूर कर दिया है। हिमाचल प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष सत्यपाल सत्ती तो राहुल गांधी पर हमला बोलते-बोलते इतना बहक गए कि बदजुबानी के नए विशेषण की खोज में मां की गाली तक पहुंच गए। कल तक सपा नेता की बदजुबानी का पाठ पढ़ाने वाले भाजपा नेताओं ने अपने प्रदेश अध्यक्ष के मर्यादा को ताक पर रखने वाले बयान पर मौन व्रत रख लिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शक्तिहीन कहे जाने पर जागते हुए चुनाव आयोग ने जिस तरह से अपनी शक्ती का अहसास नेताओं को कराया है इस बयान के बाद संज्ञान लेते हुए क्या रुख अपनाता है यह देखना दिलचस्प होगा।