दो दहाई बाद अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतरी कांग्रेस, क्या दिखा पाएंगी ‘दहाई का दम’?
लखनऊ। यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की हालत किसी से छुपी नहीं है। हर चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन पहले से और खराब होता रहा है। इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं क्योंकि पार्टी के कई जिताऊ नेता पाला बदल लिये हैं। फिर भी इस बार के चुनाव में पार्टी एक ऐसा साहस करने जा रही है जो पिछले बीस सालों में नहीं किया। यूपी की सभी सीटों पर कांग्रेस पार्टी 20 सालों बाद फाइट करने जा रही है। वैसे तो 1985 के चुनाव में आखिरी बार पार्टी ने सूबे की सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे लेकिन, साल 2002 के चुनाव में उसने कुल 403 सीटों में से 402 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
साल 1985 में हुआ यूपी विधानसभा का चुनाव वो आखिरी चुनाव था जब कांग्रेस पार्टी ने यूपी में सरकार बनाई थी। तब पार्टी ने कुल 425 सीटें लड़ी थीं। उत्तराखंड के साथ होने के कारण साल 2000 से पहले यूपी में 425 सीटें हुआ करती थी। इनमें से कांग्रेस को 269 सीटें मिली थीं। यानी पूर्ण बहुमत से कहीं ज्यादा लेकिन पार्टी में कई गुट बन गये थे। नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री रहे। तब से लेकर अब तक पार्टी का ग्राफ गिरता ही चला गया। अगले ही चुनाव 1989 में कांग्रेस 269 से सिमटकर 94 सीटों पर आ गई थी। 1991 में 46, 1993 में 28 सीटों तक लुढ़क गयी। 1996 में बसपा के समर्थन से पार्टी लड़ी। उसे 33 सीटें मिलीं। 2002 में 25 और 2007 में सिर्फ 22 सीटें मिलीं।
बता दें कि 2012 का चुनाव कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर लड़ा लेकिन, ऐतिहासिक पराजय हुई। कांग्रेस सिर्फ 7 सीटों तक सिमटकर रह गई। इस बार हालात और न बदतर हो जायें। ये कयास इसलिए लगाये जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के स्थापित कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। फिर भी कांग्रेस ने दम नहीं छोड़ा है।
प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ती हुई कांग्रेस की तस्वीर पेश की जा रही है। इसी क्रम में पार्टी ने प्रदेश की सभी 402 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारने का फैसला किया है। ये 1985 के बाद पहली बार होगा। अब सवाल उठता है कि पार्टी को कितनी सीटों पर जीत मिलती है। 2017 के चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस को बुरी से बुरी हालत में 20 से ज्यादा सीटें मिलती रही हैं। इस बार 2017 का इतिहास भी दोहरा पायेगी पार्टी या नहीं, ये कहना बहुत मुश्किल है।