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November 22, 2024
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‘जाहिल हमारे शहर में उस्ताद हो गए’, जरुर पढ़िए अलकनंदा सिंह का यह आर्टिकल

  • May 11, 2017
  • 1 min read
‘जाहिल हमारे शहर में उस्ताद हो गए’, जरुर पढ़िए अलकनंदा सिंह का यह आर्टिकल

ये कैसा पागलपन है, ये कैसी बदहवासी है कि भाजपा और संघ में शामिल होने वाले मुसलमानों के खिलाफ टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद मोहम्मद नूरूर रहमान बरकती ने फतवा जारी करते हुए कहा है कि भाजपा या आरएसएस (संघ) में शामिल होने वाले सभी मुसलमान सजा के हकदार होंगे।
बरकती ने कहा कि वे ट्रिपल तलाक पर अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, क्योंकि यह शरियत के तहत बीते 1500 वषों से लागू है। फतवा जारी कर सुर्खियों में रहने वाले टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद मोहम्मद नूरूर रहमान बरकती ने उन सभी मुसलमानों के खिलाफ फतवा जारी किया, जो भाजपा या आरएसएस (संघ) में शामिल होते हैं। फतवों के इस मास्‍साब को ये नहीं पता कि पानी जब सिर से ऊपर चला जाता है तो आदमी डूबने लगता है और हर एक डूबने वाले को तैरकर उबरने का मौका नहीं मिलता, खासकर तब जबकि वैमनस्‍यता का बोझ उसके सिर पर तारी हो चुका हो।
बरकती ने एक के बाद एक फतवे दिए जाने का रिकॉर्ड कायम किया है। और इनके आने का सिलसिला बदस्‍तूर जारी है। फिलहाल, दूर-दूर तक कोई उम्मीद भी नहीं है कि ये अभी थमेंगे भी। और ये थमें भी तो तब, जबकि आम मुसलमान फतवे जारी करने वाले घोर प्रतिक्रियावादी मुल्लाओं के खिलाफ खड़े हों। मुसलिम समाज के भीतर इस तरह की कोई हलचल नहीं दिख रही है, इससे तो ऐसा लगता है कि मुसलिम समाज या तो इन फतवों को लेकर निर्विकार भाव पाले हुए है या मुल्लाओं की दहशत इन्हें सता रही है। ताजा फतवा कल मंगलवार को सामने आया जब कि टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद मोहम्मद नूरूर रहमान बरकती ने कहा कि संघ के साथ कोई भी सहयोग मुसलमानों को कड़ा दंड का सहभागी बनाएगा। वे (मुसलमान) कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस या माकपा जैसी किसी भी अन्य पार्टी में शामिल हो सकते हैं।
बकौल इमाम संघ लोगों को मार रहा है, ईसाई, दलित और मुसलमानों को संघ निशाना बना रहा है, इसलिए मुसलमानों को भाजपा और संघ में शामिल नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम संघ और उसके गुंडों का सामना करने के लिए सभी धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं को भी एक साथ आने का आह्वान करते हैं, अन्यथा हम देश में जेहाद की घोषणा करेंगे।
इससे पहले बरकती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी फतवा जारी करते हुए मोदी की दाढ़ी काटने वाले को या उन पर काली स्याही फेंकने पर पच्चीस लाख रुपए का इनाम रख दिया था। देखिए कि कितना खतरनाक है यह फतवा। वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के घोषित रूप से खासमखास हैं।
हालांकि तब मुंबई के मदरसा-दारुल-उलूम अली हसन सुन्नत के मुफ्ती मंजर हसन खान अशरफी मिस्बही ने मोदी के खिलाफ जारी उनके फतवे को सिरे से खारिज कर दिया था। उन्होंने शाही इमाम के नमाज अदा करने के हक पर भी सवाल खड़े कर दिए। मिस्बही ने दावा किया कि बरकती मुफ्ती हैं ही नहीं और उन्हें अपनी राजनीतिक राय को फतवे के तौर पर पेश कर उसकी पवित्रता को खत्म करने की कोशिश हरगिज नहीं करनी चाहिए।
निश्‍चित ही अकारण और बात-बात पर जारी फतवे अब पर्सनल टसल का माध्‍यम बन रहे हैं। मध्यवर्गीय मुसलमान इन फतवे जारी करने वालों के खिलाफ चुप हैं, उनकी चुप्पी देश की संवैधानिक रुतबे के लिए शर्मनाक है। मुझे पाकिस्तानी मूल के प्रख्यात पत्रकार-लेखक और विचारक (वैसे वह खुद को पाकिस्‍तानी नहीं मानते) तारिक फतह का एक इंटरव्यू याद आ रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘भारत में ‘अल्ला का इस्लाम’ नहीं, ‘मुल्ला का इस्लाम’ चलाया जा रहा है जिसका मजहब से कोई वास्ता ही नहीं है।’’ वास्ता है सिर्फ वास्ते की राजनीति से।
बात सिर्फ इमाम बरकती की नहीं उन जैसी कुंद सोच वाले तमाम इमामों की भी है जो देवबंद सरीखे मुसलमानों के महत्त्वपूर्ण केंद्र से ”फतवों” को जारी कर समाज को पिछड़ा बनाए रखने के लिए इसका इस्‍तेमाल करते हैं। इसी देवबंद ने कुछ समय पहले महिलाओं और पुरुषों के एक साथ काम करने को भी अवैध बताया गया था।
जरा सोचिए कि किस अंधेरे युग में अब भी रहते हैं फतवे देने वाले। पर किसी भारतीय मुसलमान ने इस फतवे की निंदा नहीं की। इसी तरह से देवबंद ने अपने एक और फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे, तो वह वैध नहीं है।
दरअसल, एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा था, पत्नी ने मुझे तीन बार तलाक कहा, लेकिन हम अब भी साथ रह रहे हैं, क्या हमारी शादी जायज है? इस पर देवबंद ने कहा कि सिर्फ पति की ओर से दिया गया तलाक जायज है और पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं है।  जब सारा संसार स्त्रियों को जीवन के हर क्षेत्र में बराबरी देने के लिए कृतसंकल्प है तब देवबंद औरत को दोयम दर्जे का इंसान बनाने पर तुला है।
एक और उदाहरण देखिए कि देवबंद ने अंगदान और रक्तदान को भी इस्लाम के मुताबिक हराम करार दे दिया। देवबंद से पूछा गया था कि रक्तदान करना इस्लाम के हिसाब से सही है या गलत? इसके जवाब में देवबंद ने कहा, शरीर के अंगों के हम मालिक नहीं हैं, जो अंगों का मनमाना उपयोग कर सकें, इसलिए रक्तदान या अंगदान करना अवैध है। इन फतवों को सुन कर तो यही लगता है देवबंद मुसलमानों को किसी और दुनिया में लेकर जाना चाहता है।
”फतवा यानी वो राय जो किसी को तब दी जाती है जब वह अपना कोई निजी मसला लेकर मुफ्ती के पास जाता है। फतवा का शाब्दिक अर्थ असल में सुझाव है, यानी कोई इसे मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। यह सुझाव भी सिर्फ उसी व्यक्ति के लिए होता है और वह भी उसे मानने या न मानने के लिए आजाद होता है। इसे आलिम-ए-दीन के शरीअत के मुताबिक जारी किया जाता है।”
मगर जिन मुद्दों पर जिस तरह के फतवे आते हैं, उनसे साफ है कि इन्हें जारी करने वाले अपने समाज को घोर अंधकार के युग में ही रखना चाहते हैं, शायद यह मुल्लाओं द्वारा चलाई जा रही ‘वोट बैंक की राजनीति’ के लिए मुफीद भी है।
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी भी लंबे समय से मनचाहे फतवे देते रहे हैं। उनकी आदत में शामिल है कि चुनावी मौसम में तो फतवा किसी दल विशेष के पक्ष या विपक्ष में दिया ही जाता है।
यह भी सच है कि फतवे मुसलमानों पर ‘बाध्यकारी’ तो नहीं होते पर इनसे एक नकारात्मक माहौल जरूर बन जाता है। इस्लाम के अधिकतर धर्मग्रंथ अरबी में उपलब्ध हैं। इन धार्मिक पुस्तकों तक सामान्य मुसलमानों की पहुंच नहीं है। इस पृष्ठभूमि में मुसलमानों को जो इमाम और मौलवी बताते हैं, वे उसी पर यकीन कर लेते हैं इसलिए बहुत-से मुसलमान फतवों पर अमल करना शुरू कर देते हैं। यही समस्या की जड़ है।
अब सुप्रीम कोर्ट में कल से ट्रिपल तलाक पर हर रोज सुनवाई शुरू होने जा रही है तब बरकती का इसके खिलाफ भी ये कहना कि हम इसे शरिया के खिलाफ समझते हैं, बेहद ही अहमकाना हरकत है जो न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है बल्‍कि उन औरतों को भी ”कब्‍जे” में रखने की कोशिश भी है जो बमुश्‍किल अपनी लड़ाई अपने बूते लड़ रही हैं।

देखना यह होगा कि फतवों के इन मास्‍साब का फतवा ट्रिपल तलाक पर कितना असरकारी होता है या कि सीला हुआ पटाखा निकलता है।
और अब चलते चलते राहत इन्दौरी का ये शेर बरकती के इस फतवे के नाम –
लफ़्ज़ों के हेर-फेर का धंधा भी ख़ूब है,
जाहिल हमारे शहर में उस्ताद हो गए।
-अलकनंदा सिंह