पढ़िए यह व्यंग्य- मिठाई की दीपावली यात्रा !
दीपावली से एक दिन पहले हमने मिठाई का जो पैकिट कपूरजी के यहां भिजवाया था, अगली सुबह वर्माजी वही डिब्बा लेकर हमारे यहां तशरीफ लाए। हम पति पत्नी जब कपूरजी के यहां गए थे तो यह अच्छा ही हुआ कि श्रीमती कपूर बाज़ार गई हुई थीं, नहीं तो उन्हें ज़रूर शक हो जाता कि डिब्बे में बढ़िया मिठाई तो नहीं होगी तभी सुन्दर चमकते कागज़ में पैक करके लाए हैं। श्रीमती कपूर जानती थीं कि आजकल पैकिंग का ज़माना है, पैकिंग सामान से कहीं बड़ी और आकर्षक होती है और अनेक बार होता है कि बड़े आकार के भड़कीले चमकीले पैक से सामान्य सामान निकला या मंगाया कुछ मगर निकला कुछ और। ऑनलाइन खरीद के कई दिलचस्प किस्से हैं।
खैर, हमने जो पैक कपूरजी को दिया था उसमें बढ़िया क्वालिटी की स्वादिष्ट मिठाई थी हां थी कम, पांच सौ ग्राम। पैकिंग हमने अंतर्राष्ट्रीय लुक जैसी की थी, जैसे अब अधिकांश भारतीय चीज़ों की होती है। हमें लगा श्रीमती कपूर व श्रीमती वर्मा उठते बैठते बतियाते हुए फेसबुकीय, पारिवारिक, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय व धारावाहिकीय मसलों पर टिप्पणी करती तो होंगी कि लोगबाग़ चमकदार रंगीन पैकिंग कर देते हैं और मगर आमतौर पर उनका डिब्बा उनके घर, इसका उसके घर व हमारा उनके व पता नहीं किसका किसके यहां पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया में किसे फुर्सत रहती है कि देखे किसने कौन सी व कैसी मिठाई दी है। लोकल हलवाई ने बनाई है या बाहर के। हलवाइयों ने थोक में मिठाई बनानी होती है, लोगों ने खरीदनी होती है खानी, खिलानी, देनी व लेनी होती है।
अच्छा तो नहीं लगा मगर हमारा मिठाई का डिब्बा हमें वापिस मिल गया। पत्नी ने मुंह बिचकाया, हमारा नहीं है किसी और का है हमारे वाला वापिस क्यूं आएगा। मैंने सूचित किया सर, डिब्बाजी खुद नहीं आए वर्माजी ने भिजवाए हैं। कपूरजी ने डिब्बा शर्माजी को दिया होगा कुछ देर बाद शर्माजी ने गुप्ताजी के यहां पहुंचा दिया होगा। श्रीमती गुप्ता ने अपने परिचितों का हिसाब करते हुए गुप्ताजी को कहा होगा मेहताजी के यहां दे आओ, शर्माजी के यहां से आया, अन्दर माल ठीक ही होगा। खोल लिया तो खाई जाएगी फिर बाज़ार से एक और पैक लाना पड़ेगा। मेहताजी ने क्यूं नहीं रखा, वर्माजी के यहां क्यूं भिजवा दिया, क्या श्रीमती मेहता ने सोचा होगा कि गुप्ता ने जानबूझ कर थोड़ी सी मिठाई दी है। क्योंकि वर्माजी उनके पड़ोस में रहते हैं, दीवार के चक्कर में उनका रोज़ का झगड़ा है मगर दीवाली की शुभकामनाओं का दिखावा करने के लिए उन्होंने यह डिब्बा वर्माजी के यहां भिजवा दिया होगा, पप्पू के हाथ। क्योंकि वर्मा ने मेहता को मिठाई नहीं भिजवाई इसलिए आगे सरका दी। उन्होंने पप्पू का थैंक्स भी नहीं किया होगा। इसका मतलब यह कि मिठाई का पैकिट किसी ने भी खोल कर नहीं देखा क्योंकि सब को फॉर्मेलिटी करनी थी।
दरअसल हम सभी एक वाशरूम में नहाते हैं और सभी नंगे हैं मगर मानते हैं कि सभी ने बढ़िया कपड़े पहने हैं। यदि हम पैकिट को बिना रैप किए देते तो संभवत: कपूरजी के यहां ही खुल जाता। हमारा पैकिट हमें ही वापिस आ गया देखूं खोलकर, बेटा बोला। मैंने उसे मना किया लेकिन उसने तुरंत ऊपर लगा कागज़ उतार दिया। अन्दर वह डिब्बा नहीं था जो हमने पैक किया था मगर साइज़ वही था। मिठाई के साथ कार्ड पर लिखा था, ‘उन्हें धन्यवाद जिनकी बदौलत इतनी स्वादिष्ट मिठाई खाने को मिली, वर्मा परिवार’। वर्मा को विशवास था, यह मिठाई उनके अच्छे पड़ोसी मेहता ने तो उनके लिए खरीदी नहीं होगी और कहां से आया देखने के चक्कर में डिब्बा खोल दिया होगा। वर्माजी का धन्यवाद सभी के लिए था जिनके यहां से होते हुए हमारा डिब्बा उन तक पहुंचा। हम खुश थे हमारा डिब्बा वापिस नहीं आया।
– संतोष उत्सुक से साभार