भगवा जैसा पवित्र लिबास बदनाम कर रहे भगवाधारियों के तार कश्मीरी आतंकियों से जुड़े हो सकते हैं !
अपवित्र आतंक का ड्रेस कोड पवित्र होता है। जिहाद पवित्र है। इसका शाब्दिक अर्थ है- आत्मरक्षा के लिए किया गया युद्ध। यानी डिफेंसिव वार।देश का हर सैनिक जिहादी होता है। अपवित्र आतंकवादियों ने अपने गंदे मकसद वाले खून-खराबा को पवित्र जिहाद का नाम दिया है। अशांति और नफरत फैलाने वाले दहशतगर्दों ने अपने संगठनों का नाम पैगम्बर मोहम्मद साहब के नाम पर रखा है। वही पैगम्बर जिनका मुख्य पैगाम मानवता, शांति, अमन, मोहब्बत और भाईचारा है।
मानवता के दुश्मन आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता। ये किसी भी धर्म या धर्म से जुड़े प्रतीकों को बदनाम करने की साजिश कर सकते हैं। हिन्दुत्व का प्रतीक भगवा धारण किये कुछ आतंकी लखनऊ के एक चौराहे पर आतंक मचाते दिखे। इन्होंने मेवा बेचने वाले एक गरीब कश्मीरी को पीट दिया। लखनऊ की तहजीब शर्मसार और इंसानियत शर्मिन्दा हो गई। भगवा जैसा पवित्र लिबास बदनाम कर रहे इन भगवादारी हमलावरों के तार कश्मीरी आतंकियों से जुड़े हो सकते हैं। जो कश्मीरी अलगाववादी नहीं है। आतंकवाद में नहीं लिप्त है। प्रलोभन भी स्वीकार नहीं कर रहा। भारत की मुख्यधारा से जुड़कर मेहनत मशक्कत करके पेट पाल रहा है। ऐसे को कूटो। बड़े आतंकियों का ये फरमान आया होगा। और छोटे आतंकियों ने लखनऊ में मेवा बेच रहे एक गरीब मेवे वाले को पीटने के साथ हुक्म की तामील शुरू कर दी।
इसमें कोई शक नहीं की कश्मीर में लोग गुमराह किये जाते हैं। यहां तीन तरह के लोग हैं-एक-आतंकवादी, दूसरे आतंकियों के समर्थक(अलगाववादी) पत्थर बाज देशद्रोही। तीसरे किस्म के लोग निहायत शरीफ, मेहनती, इमानदार और देशभक्त होते हैं।
इनकी खूबी ये है कि ये लाख भटकाने पर भी नहीं भटके। दहशतगर्दी से दूर रहे। अलगाववादियों का समर्थन नहीं करते। आतंकवाद का जमकर विरोध करते हैं। अपने देश भारत से मोहब्बत करते हैं। कश्मीरियों में आतंकवादियों के शमर्थकों/ अलगाववादियों का वर्चस्व है। ये लोग वतनपरस्त कश्मीरियों को आगे नहीं बढ़ने देते। ज्यादातर कश्मीरी गरीब देशभक्त हैं। मजदूर हैं। क्योंकि ये पाकिस्तान की फंडिंग को स्वीकार नहीं करते। चाहे भूखे मर जायें.. मजदूरी कर लें.. घर परिवार छोड़कर कोसों दूर मेवा बेचें.. पसीना बहायें..भूखे रह जायें.. पर देश में रहकर देश के साथ गद्दारी नहीं करते। कश्मीर के मेवा व्यापारियों से मेवा लेकर उत्तर भारत के शहरों-शहरों मेवा बेचने वाले ये मेवे वाले मजदूर होते हैं। जब मेवे का सीजन नहीं होता तब मजदूरी करते हैं।
बस यही बर्दाश्त नहीं है। मीलों दूर से आकर मेवा बेच लेंगे। मजदूरी कर लेंगे। भूखे रह जायेंगे.. लेकिन मोटी रकम की लालच में पत्थरबाजी नहीं करेंगे। बेगुनाहों पर बम नहीं फेंकेगे। बंदूक नहीं उठायेंगे। आतंकवाद और अलगाववाद का समर्थन नहीं करेंगे। पाकिस्तान की फंडिंग की रकम नहीं लेंगे। अपने देश भारत के साथ गद्दारी नहीं करेंगे। पाकिस्तान का गुणगान नहीं करेंगे।
बस शायद इसलिए ही आतंकियों ने अपने सब कार्डिनेट्स को फरमान जारी कर दिया- राष्ट्रवादी गरीब कश्मीरियों को कूटो। वो चाहे जहां भी हों। दिल्ली में हो भोपाल में हो या लखनऊ में मेवा बेच रहे हों। जहां मिलें मारो सालों को …
बस अपने आकाओं (बड़े आतंकियों) के इस फरमान पर ही भगवा पट्टा धारियों (छोटे आतंकियों) ने अमल शुरू किया गया होगा।… और लखनऊ में एक गरीब कश्मीरी मेवेवाला बुरी तरह पीटा गया।
-लेखक नवेद शिकोह यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं । ये उनकेे निजी विचार हैै ।