पढ़िए समाज और नेताओं को आईना दिखता ध्रुव गुप्त का आर्टिकल : उन्नाव के आगे क्या ?
उन्नाव के बलात्कार कांड में जो होता हुआ दिख रहा है, वह अपने आधुनिक भारत का शायद सबसे नृशंस और बर्बर परिदृश्य है। एक बच्ची एक दबंग विधायक और उसके गुर्गों के हाथों बलात्कार का शिकार होती है। थाने में अपनी रपट लिखाने के लिए उसे प्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास के आगे आत्मदाह की कोशिश करनी पड़ती है। केस दर्ज होने के बाद न्यायालय के दबाव में विधायक की गिरफ्तारी तो हो जाती है, लेकिन पीड़िता के पिता को पुलिस हिरासत में मरना पड़ता है। केस की पैरवी करने वाले उसके चाचा को जेल में डाल दिया जाता है। अभी-अभी एक बेहद संदिग्ध दुर्घटना में कांड की दो गवाह-उसकी मौसी और चाची मारी जाती है और वह खुद तथा उसका वकील आई. सी. यू में जीवन की जंग लड़ रहे हैं।
इस जंगल राज की पुलिस क्या कर सकती है, यह हम देख चुके हैं। सी. बी. आई के पास करने के लिए कोई गवाह बचेगा, इसकी कोई संभावना नहीं। राजनेताओं के दोगले चरित्र तो हम परिचित हैं। ऐसे बलात्कारी हर दल में मौजूद हैं। थोड़ी-बहुत उम्मीद देश की महिला सांसदों पर टिकी थी, लेकिन आज़म खान की अभद्र टिप्पणी पर गज़ब की एकजुटता दिखाने वाली महिला सांसदों की इस वीभत्स कांड को लेकर चुप्पी यह बताती है कि राजनीति की सड़ांध किस स्तर तक पहुंच चुकी है।
अब जो भी करना है, इस देश के आमजन को ही करना है। यह हमें ही तय करना है कि देश की बच्चियों के खिलाफ लगातार चल रही दरिंदगी के खिलाफ हम अभी सड़कों पर उतरेंगे या बलात्कारियों के हाथ अपने घर की बच्चियों तक पहुंचने का इंतज़ार करेंगे ?
-लेखक ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस और वरिष्ठ साहित्यकार हैं ।