कोरोना वायरस की चर्चा के बीच पढ़िए ध्रुव गुप्त का आर्टिकल- एक नज़र जेलों पर भी !
प्रधानमंत्री के देश को संबोधन में जो एक बात सबसे अच्छी लगी वह थी अपने को खतरे में डालकर कोरोना के विरुद्ध ज़रूरी लड़ाई लड़ रहे चिकित्सा, पुलिस, प्रशासन से जुड़े लोगों और सफाईकर्मियों के प्रति सम्मान प्रकट करने की भावुक अपील। कोरोना के खतरे के मद्देनज़र सामाजिक संपर्क को यथासंभव टालने की प्रधानमंत्री की अपील पर अमल ज़रूरी है। आश्चर्य बस इस बात का है कि देश के जेलों में बंद कैदियों की अनावश्यक भीड़ पर किसी का ध्यान नहीं जाता।
उत्तर भारत के जेलों में क्षमता से कई गुने ज्यादा कैदी पशुओं की तरह ठूंसकर रखे गए हैं। भीड़ की वज़ह से वहां सफाई और स्वास्थ्य सुविधाओं की दशा दयनीय है। ये जेल कोरोना के सबसे सॉफ्ट टारगेट हैं। चीन, ईरान और दक्षिण कोरिया सहित कुछ देशों की जेलें महामारी से आक्रांत हो चुकी हैं। ईरान की सरकार ने अपने 54 हज़ार कैदियों को अस्थायी तौर पर रिहा करने का फ़ैसला किया है। अपने देश के जेलों में बंद आधे से ज्यादा ऐसे कैदी हैं जिन्हें बेहद मामूली अपराधों में या जमानतदारों के अभाव में बंद रखा गया है। बिहार की हालत तो और बुरी है जिसके जेलों में शराब पीने के आरोपी हज़ारों लोग जेलों में सड़ रहे हैं।
कारावास की सजा सिर्फ शराब की तस्करी करने वाले लोगों के लिए होनी चाहिए। पीने वालों को हतोत्साहित करने के लिए आर्थिक दंड पर्याप्त है। राज्य सरकारों को जेलों में बंद कैदियों की समीक्षा कर छोटे-मोटे अपराधों में शेष सज़ा माफ़ कर और शराबबंदी तोड़ने वाले लोगों से अच्छे आचरण की शपथ लेकर उन्हें रिहा कर देने पर विचार करना चाहिए।
भीड़ से बचें, कोरोना को हराएं !
-लेखक ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस और वरिष्ठ साहित्यकार हैं ।