हिंदी रंगमंच दिवस पर प्रधानमंत्री की नाटकबाज़ी ! पढ़िए नवेद शिकोह का यह आर्टिकल-
अन्यथा मत लीजिएगा। मैं नाटकबाजी कहने को इज़्ज़त अफ्ज़ाई मानता हूं। मेरा हिंदी रंगमच से रिश्ता रहा है। नाटक की हर विधा से वाक़िफ हूं। एक्टिंग, सैट, लाइट, प्रॉप, मेकअप, कास्टयूम, स्क्रिप्ट, प्रचार.. से वाक़िफ रहा हूं। प्रोसेनियम, नुक्कड़ और रेडियो नाटक का पेशेवर रहा। आकाशवाणी के लिए दर्जनों नाटक लिखे। तक़रीबन दस साल पेशेवर नाट्य समीक्षक रहा। इसलिए नाटक को इबादत मानता हूं। सम्मान मानता हूं। इस विधा से भावनात्मक रूप से जुड़ा हूं। बिना किसी सोर्स सिफारिश बड़े-बड़े अखबारो़ में नाटक के बदौलत ही छपता था। एक बड़े अखबार में नौकरी भी सांस्कृतिक संवाददाता के रूप मे हुई थी।
जब रंगकर्म से जुड़े थे तब हर नाटक की रिहर्सल से पहले और हर मंच प्रस्तुति से पहले स्क्रिप्ट पूजा में शरीक होते रहे। अपने प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में किसी की नकारत्मक टिप्पणी मुझे अखरती है। लेकिन जब कोई उन्हें कलाकार, एक्टर या नाटकबाज़ कहता है तो मुझे बुरा नहीं अच्छा लगता है।
जब प्रधानमंत्री ने कोरोना से लड़ने की लड़ाई में अंधेरा करके लाइट जलाने के आयोजन का आग्रह किया। रविवार पांच अप्रैल रात नौ बजे देशवासी लाइट बंद करके मोमबत्ती, टार्च, दीप या मोबाइल इत्यादि से लाइट जलायेंगे। अंधेरे में प्रकाश पुंज हमें इस बात की हिम्मत देगा कि कोरोना जैसे हर अंधेरे से लड़ने के लिए हम एकजुट और अनुशासित हैं।
कोरोना वायरस से लड़ने के महायुद्ध के दौरान एक सेनापति होने के नाते प्रधानमंत्री ने ऐसे अर्थ पूर्ण आयोजन का आग्रह सम्पूर्ण देशवासियों से किया। देश ने इसकी सराहना की और इसपर अमल करने का वादा किया। किंतु कुछ आलोचकों ने प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले को नाटक कहा। हांलाकि आलोचकों की ये आलोचनात्मक टिप्पणी है लेकिन इसे प्रशंसा या सकारात्मक भी मान सकते हैं। प्रकाश रंगमंच की आत्मा होती है। समाज के हित यानी नाट्य साहित्यिक को प्रभावशाली, आकर्षक और कलात्मक शैली म़े रंगमंच पर प्रस्तुत करने से पहले अंधेरा करना बेहद ज़रुरी होता है। और फिर प्रकाश सम्प्रेषण अपना मकसद बयां करता है। नाट्य विधा सबसे बड़ा ऐसा इवेंट है जिसमें सादगी और कम खर्च के साथ तमाम विधाएं समायोजित होती हैं।
साफ नियत, समाजहित-देशहित के उद्देश्य और कम संसाधन व बेहद अनुशासन का नाम अगर नाटक है तो हां हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नाटकबाज या नाटककार ह़ै। हां वो अच्छा इवेंट मैनेजमेंट भी जानते हैं।
-लेखक नवेद शिकोह, यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं ।