हत्यारे गोरक्षकों की संवेदना और आस्था तभी जगती है जब सामने वाला मुसलमान हो !
इस देश के हिन्दू संगठनों में गाय के प्रति हिलोरे मार रही करुणा उनकी मानवीय संवेदना की उपज नहीं है। इन संगठनों को पता है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा गोमांस निर्यातक देश है। ज्यादातर हिन्दुओं द्वारा संचालित दर्जनों लाइसेंसी कारखानों में हर दिन हज़ारों गाएं और भैंसे कटती हैं और उनके मांस को अरब और यूरोपीय देशों के नागरिकों के डाइनिंग टेबुल पर परोसा जाता है। उन्हें बंद करने की मांग कभी नहीं उठती।
भाजपा शासित प्रदेश गोवा की ‘धर्मनिष्ठ’ सरकार अपने प्रदेश में पर्यटकों को गोमांस की कोई कमी नहीं होने देती। उत्तर-पूर्व के राज्यों में गोमांस भक्षण पर भी उन्हें एतराज़ नहीं। जो थोड़े-से हिन्दू गोमांस खाते हैं, उन्हें भी ये लोग बर्दाश्त कर लेंगे। भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक इन हत्यारे गोरक्षकों की संवेदना और आस्था तभी जगती है जब सामने वाला मुसलमान हो। यह मसला उनके लिए सांप्रदायिक विद्वेष पैदा कर उसे अपने सियासी हित में इस्तेमाल करने का औज़ार भर है।
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देश के ज्यादातर लोग चाहते हैं कि पूरे देश में एक साथ गोवंश की हत्या और उनके मांस के निर्यात को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया जाय। अनुपयोगी और आवारा गोवंश के लिए हर शहर में गोशालाएं खुलें। उन्हें गोबर से ईंधन तथा गोमूत्र से कीटाणुनाशक का व्यावसायिक स्तर पर निर्माण करने वाली उत्पादक संस्थाओं का रूप दिया जाय। इससे लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे और सडकों तथा खेतों को आवारा गायों के उत्पात से मुक्ति भी मिलेगी। लेकिन क्या हमारी सरकार इसके लिए तैयार है ? शायद नहीं, क्योंकि तब वोटों के ध्रुवीकरण का एक भावनात्मक मुद्दा उसके हाथ से छूट जाएगा !
-लेखक ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस हैं और वरिष्ठ स्तंभकार हैं |