जिन्हें गूलर का फूल मिल जाता है उनकी हर इच्छा पूरी हो जाती है ! पढ़िए पूर्व IPS ध्रुव गुप्त का यह रोचक आर्टिकल-
तलाश गूलर के फूल की !
गूलर या संस्कृत के उडुम्बर वृक्ष को उसके औषधीय गुणों के कारण नीम, पीपल और बरगद की तरह पवित्र माना गया है। गूलर के फूल की दुर्लभता और रहस्यमयता के किस्से हम सबने सुन रखे हैं। दर्शन दुर्लभ होने के अर्थ में गूलर का फूल होना मुहावरे का प्रयोग भी किया है। यह और बात है कि पृथ्वी पर गूलर के फूलों को कभी किसी ने नहीं देखा। किंवदंती है कि श्वेत रंग के ये फूल रात में खिलते हैं और सुबह के पहले स्वर्गलोक में चले जाते हैं। ये फूल कुबेर की संपदा है जो हम पृथ्वीवासियों के लिए उपलब्ध नहीं है। यह भी कि पूर्णिमा की रात में खिलने वाला यह फूल भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है। जिन्हें मिल जाता है उनकी हर इच्छा पूरी हो जाती है। कहा जाता है कि इन फूलों का काजल अपनी आंखों में लगाने के कारण कृष्ण सबके मन मोह लेते थे। इन फूलों की तलाश में सदियों तक रात-रात भर पेड़ की शाखों पर बैठकर लोगों ने प्रतीक्षा की है, लेकिन किसी के हाथ कभी कुछ नहीं लगा। कुछ लोग जिसे फूल समझ लेते हैं वह गूलर का फूल नहीं, फल होता है। अंजीर की तरह गोल-गोल गूलर के फल टहनियों पर गांठ की तरह लगते हैं। कच्चे में हरा और पकने पर लाल दिखने वाले इस फल के भीतर की टेढ़ी-मेढ़ी बनावट को ही कुछ लोग गूलर का फूल मान लेते हैं, लेकिन यह मान्यता इसके बारे में सुनी कहानियों और दुर्लभता की अवधारणा से कतई मेल नहीं खाती।
किशोरावस्था में गूलर के काल्पनिक फूलों की कई कहानियों में वह एक कहानी हमें बहुत लुभाती थी जिसमें एक गरीब युवक एक सुंदर राजकुमारी से एकतरफा प्यार में विक्षिप्त हो चला था। एक तांत्रिक ने उसे कहा कि जिस दिन उसे गूलर का फूल मिल जाएगा, उस दिन राजकुमारी भागी-भागी खुद उसके पास आएगी। वर्षों की कोशिशों से उसे गूलर का फूल भी हासिल हुआ और उसके सपनों की राजकुमारी भी। इस कहानी से प्रेरित होकर तब इस फूल की तलाश में बहुत वक़्त बर्बाद किया था हमने भी। न गूलर का फूल मिला और न कहीं से भागकर कोई हमारे पास ही आई। बावज़ूद इसके गूलर के मिथकीय फूलों को हमारा आभार तो बनता है जिन्होंने बचपन में हमें रहस्य-रोमांच और किशोरावस्था में रूमान के आकाश में उड़ान भरने के बहुत सारे अवसर दिए हैं।
- लेखक ध्रुव गुप्त, पूर्व आईपीएस और वरिष्ठ साहित्यकार हैं ।