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एक साल बाद भी ‘नजीब’ का पता नहीं, यह फोटो देख चुल्लू भर पानी में डूब मरें मुसलमानों के नेता !

  • October 16, 2017
  • 1 min read
एक साल बाद भी ‘नजीब’ का पता नहीं, यह फोटो देख चुल्लू भर पानी में डूब मरें मुसलमानों के नेता !

– जियाउर्रहमान –
देश के इतिहास में सोमवार को ऐसा पहली बार हुआ है जब एक बेबस, लाचार मां अपने लाडले की बरामदगी के लिए दिल्ली हाईकोर्ट  पर इन्साफ मांगने के लिए आई  हो और पुलिस उसे इन्साफ देने की बजाय जबरन उठाकर गाडी में डाल देती है | एक पीडिता को इस तरह खींचा जाता है जैसे इस देश में इन्साफ माँगना भी गुनाह हो ? खैर, देश में लोकतंत्र को खत्म करने की हर रोज साजिशें हो रही हैं, न्याय मांगने वालो को दबाया जा रहा है और विपक्ष खामोश है ? विशेष बात यह है कि जहाँ भी पीड़ित मुस्लिम है वहां कथित सेक्युलर नेता भी बोलने से बाख रहे हैं | मीडिया भी धार्मिक आधार पर ख़बरों का चयन कर रहा है और जांच एजेंसियां भी धार्मिक आधार पर जांच आगे बड़ा रही हैं | यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है क्योंकि एक साल पहले देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू से एक छात्र नजीब गायब होता है और बाद में पता चलता है कि उसका अभाविप के नेताओं से विवाद हुआ था बस यही से पूरा मामला बदल जाता है | ऐसा लगता है कि गायब हुए नजीब का ‘नजीब’ होना अथार्त मुस्लिम होना गुनाह था ? मीडिया के चैनल इस मामले पर मौन साधे हुए हैं और खुद को आधुनिक कहने वाली दिल्ली पुलिस भी आजतक कोई सुराग नहीं लगा सकी है | कोर्ट से मामला सीबीआई को दिया गया लेकिन पांच माह में भी सीबीआई कोई ठोस निर्णय नहीं ले सकी है | आखिर क्यों ?

कुछ लोगो को मेरे यह सब कहने से आपत्ति हो सकती है लेकिन यह सच है कि नजीब का मुस्लिम होना आज के भारत में गुनाह है ? देश में नजीब को लेकर अल्पसंख्यको और जेएनयू के छात्रों ने तमाम प्रदर्शन किये लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ | दिल्ली में बैठी मोदी सरकार और उसके नेता इस मामले पर चुप्पी साधे हुए है | एक अजीब सी ख़ामोशी फिजाओं में हैं ? सभी को इस बात की चिंता तो है कि नजीब कहा है ? लेकिन खुलकर विरोध करने , आवाज़ उठाने की जहमत कोई नहीं उठा पा रहा है | आज दिल्ली पुलिस ने एक वर्ष से अपने बेटे की तलाश में दर दर भटक रही मां को दिल्ली हाईकोर्ट  से जबरन उठाया और खींचकर गाड़ी में डाला तो ह्रदय काँप उठा ? सवाल यही मन में आया कि यदि उन पुलिस वालो का बेटा या भाई एक वर्ष से लापता होता और उनकी मां ऐसे धरने पर इन्साफ के लिए होती और फिर पुलिस ऐसे खींचकर उठती तो क्या वह सह पाते ?

खैर, पुलिस और सरकार तो हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ाने में लगी है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि चुनावी मौसम में नजर आने वाले कथित मुसलमानों के नेता कहा है ? आज जब एक माँ अपने बेटे को ढूँढने की गुहार लगा रही है, इन्साफ मांग रही है तो वह नेता आगे आकर उसकी आवाज़ से आवाज़ क्यों नहीं मिलाते ? क्या मुसलमानों के नेताओं को सिर्फ कौमपरस्ती चुनावो में ही नजर आती है ? या फिर उनका जमीर मर चुका है | उनमे सच को सच कहने की हिम्मत नहीं बची है ? बहुत सारे सवाल मुस्लिम नेताओं से मन में है | कथित मुसलमानों के ठेकेदारों की चुप्पी का ही परिणाम है कि बेबस मां यूपी से आकर देश की राजधानी में भटक रही है | गैरत अगर मुस्लिम नेताओं में बची हो तो राजनैतिक दलों की गुलामी और चापलूसी से भी ऊपर उठकर आगे आयें | दिल्ली को ताकत का एहसास कराएँ | हाँ अगर ऐसा न कर सके तो झूठी और ढोंगी कौमपरस्ती छोड़कर चुल्लूभर पानी में डूबकर मर जाएँ |

-लेखक व्यवस्था दर्पण के संपादक हैं

https://www.youtube.com/watch?v=8DJ8N6xXrlQ