प्रधानमंत्री इस देश में अपनी जान को खतरा महसूस कर सकते हैं तो कोई आम या खास इंसान क्यों नहीं ?
किसी तकलीफ को लेकर मरीज डाक्टर के पास आया। मुंह में तंबाकू दबाये मरीज से डाक्टर ने गुस्से में कहा- मुझे डर है कि आपको कैंसर हो सकता है। तंबाकू छोड़िए। जांच कराइये और फिर इलाज कराइये। ये डाक्टर हर मरीज से ऐसे ही पेश आता होगा।
अंदाजा लगाइये कि इस डाक्टर को गद्दार या पक्षपाती कहने वाले किस किस्म के लोग होंगे ! माॅब लिचिंग.. जला के मार दी गयी बच्ची…. भीड़ द्वारा मार दिये गये दरोगा…. का जिक्र करते हुए एक पत्रकार ने नसीरूद्दीन शाह से पूछा मुल्क के इन हालात पर आपका क्या कहना है । नसीरूद्दीन शाह ने पत्रकार से ये नहीं कहा कि झूठ बोल रहे हो तुम। भाग जाओ यहां से। मैं तुम्हारे सवाल का जवाब नहीं दूंगा। पत्रकार ने जिन घटनाओं का हवाला दिया था वो सब सही थीं, इसलिए नसीर साहब ने इन हालात पर फिक्र जाहिर कर दी।
दशकों साल पहले कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम या आतंकवादी हमलों पर सवाल किया हुआ होगा या सवाल हुआ होता तब भी नसीर इसपर फिक्र जाहिर करते या ऐसी फिक्र उन्होंने जाहिर की हो। ये सामान्य बात है। लेकिन फेसबुकिया गधों के ढींचू – ढींचू में कहा जा रहा है कि अभिनेता नसीरूद्दीन शाह गद्दार हैं। देश पर अविश्वास जता रहे हैं। कांग्रेसी हैं.. वामपंथी हैं। भाजपा सरकार के खिलाफ एजेंडा चला रहे हैं। चंडूखाने की मनगढ़ंत बातें करते हुए गधे लिख रहे हैं कि नसीर अपने बच्चों को आयतें याद कराते हैं, मंत्र नहीं याद कराते। यानी हर जगह हिन्दू-मुसलमान.. भाजपा-कांग्रेस पेल कर एक गंभीर बयान के अर्थ का अनर्थ करने लगे।
अब इन गधों से सामान्य बुद्धि के लोग सवाल कर रहे है कि प्रधानमंत्री इस देश में अपनी जान का खतरा महसूस कर सकते हैं तो इस देश का कोई आम या खास इंसान इस दौर पर फिक्र क्यों ना करे । जबकि ये वो दौर है जब भड़काऊ भीड़ पुलिस की हत्या किये दे रहे है, छोटी-छोटी बच्चियां जला के मार दी जा रही हैं।
फिक्र करने वालों ने अतीत में दिल्ली में निर्भया के बलात्कार और उनकी हत्या पर भी गम-ओ-गुस्सा और फिक्र जाहिर की थी। कांग्रेस सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के साथ देशभर का हर खास ओ आम, हर मजहब और हर जाति का हर आदमी खड़ा था।
निर्भया कांड पर पूरा देश इस तरह की अमानवीय घटनाओं के विरोध में मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर उतर आया था। फर्क इतना था कि इस जायज विरोध का विरोध करने वाले कुकुरमुत्ते नहीं उगे थे।
– लेखक नवेद शिकोह, यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं।