अंकिता चौहान/नई दिल्ली –
जब हम राजनीति की बात करते है तब हमारे मस्तिष्क में क्या चल रहा होता है चुनाव, दल, वोट, नेता, प्रदर्शन इन कुछ शब्दो में राजनीति की असीमित धारणा को संकुचित मस्तिष्क में फिट करने की जद्दोजहद अक्सर हर व्यक्ति करता रहता है । इसी प्रक्रिया में यदि कोई थोड़ा आगे निकल जाए तो कुछ एक और नये बिंदु निकल कर आ सकते है वरना इससे आगे बढ़ने का कष्ट आम जनता नहीं उठाती
भारत में इस बखत यदि कोई क्षेत्र सबसे अधिक आलोचनाओ का शिकार होता है तो वह ‘राजनीति’ है ऐसा शायद इसलिए कि इसमें सही और गलत आपस में इतने उलझे हुए है कि इनका पता करना एक अनंत क्रिया लगती है । आजकल का समाज, युवा वह कार्य करने की इच्छा रखता है जिसमें मस्तिष्क को कम कार्य करना पड़े इसलिए राजनीति जैसे मस्तिष्क का अधिकतम प्रयोग करने वाले क्षेत्रो से दूर रहते है
हम शर्मिंदा है सत्तर सालो में राजनीति को आम जनता तक ना पहुचा सके।
लेकिन राजनीति पर चर्चा करते समय मेरा ध्यान इसके सबसे कड़वे व दुखद पहलू तक पर जाता है यह विषय भारत की आधी आबादी से संबंधित है, यह विषय भारत की महिलाओं से संबंधित है । राजनीतिक स्थानों पर सफेद कुर्ता पहने बहुत से पुरुष राजनीतिक अकड़ जमाते नज़र आ जाएंगे किंतु महिलाएं इतनी जिनको उंगलियों पर गिना जा सके।
सारी में सर से पैर तक लिपटी हुई, कंधों पर पल्लू के नाम पर झूठी इज़्ज़त का बोझ लिए राजनीतिक गलियारों में अपनी ताकत पर ज़ोर आज़माइश करती ये कुछ महिलाएं कहीं कहीं नज़र आ जाती है
यहां शायद ही कोई ऐसी मिले जिसने पुरुष की तरह अपनी जवानी को धूप में जलाया हो, परिवार को किनारे धर, समाज की परवाह किए बिना, आडम्बरो से ध्यान हटाये हुए राजनीतिक उपलब्धियों तक पहुंची हो।
बहुत मशक्कत करनी पड़ती है ऐसा कोई उदाहरण ढूंढने में और अगर मिल भी जाए तो आपका हृदय परिवर्तन होने में तनिक भी देर न लगेगी कि महिलाओं के लिए राजनीति वाकई टेढ़ी खीर है।
हमारे मंथन का विषय यहीं आकर विराम लगा लेता है कि राजनीति महिलाओं के नाम पर ही टेढ़ी खीर क्यूँ हो जाती है?
जितनी बेफिक्री, अकड़, चमक किसी नेता की आंखो में नज़र आती है उतनी ही बेफिक्री, चमक किसी नेत्री की आंखो में क्यूँ नहीं होती, क्यूं वहां हमेशा एक डर रहता है कामज़ोरी रहती है। इसका कारण बहुत बड़ा है, बहुत गहरा है, बहुत कड़वा है महिलाओं की राजनीतिक स्तिथि दयनीय होने का कारण वो पुरुष है जो महिलाओं की मेहनत को अपनी मेहनत के कम आंकते है, जो निहायती निचले स्तर की सोच का शिकार है। न सिर्फ पुरुष ने महिलाओं ने भी अपनी स्तिथि को मज़बूत बनाने में अधिक प्रयास नहीं किया। एक सही एंव परिपक्व राजनीतिक सोच व नीति का निर्माण करने में महिलाओं की भूमिका बेहद कम रही है आपसी विरोध, कटुता ने राजनीति में महिलाओं को बड़े मंच पर एकता दिखाने से रोका है परंतु इन सब के अलावा कुछ और भी है जो राजनीति के पथ पर चल रही महिलाओं के मन में सदेव चुभता है वो है डर समाज का, परिवार का, एक घटिया सोच का जो पीछा नहीं छोड़ती जो कहती है हर महिला ज़रूर किसी ना किसी के हाथ की कठपुतली रही होगी जो पूछती है कहाँ कहाँ नज़र झुकाने की नौबत आई होगी।
स्त्री और राजनीति के बीच अगर संबंध जानने की इच्छा हो तो किसी माध्यमवर्गीय से पूछिए, आशा है उसके बाद आपको राजनीति में महिलाओं की स्थिति के बारे में विचार करने में अधिक समस्या न होगी
जहांन भर के ऐब साधारण व्यक्ति एक नेत्री में देखता है वहीं एक नेता ऐबदार होते हुए भी महान है, क्योंकि वो आदमी है कंडिशन जैसे शब्दो से ताल्लुक नहीं रखता।
ये धारणा गलत है ये विचार गलत है ये सच नहीं है , हम जानते है लेकिन परिपाटी की अंधभक्ति सोचने समझने व तर्क करने की शक्ति उत्पन्न ही नहीं होने देती और अन्याय की हाँ में हाँ मिलाकर स्वयं को एक बोझ से दूर रखते है। हमरे देश में महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा जैसे कुरीतियों से छुटकारा दिलाने के लिए एक गहरा संघर्ष रहा है जिसमें 150 साल बाद भी वर्तमान समय तक यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुए है अर्थात महिलाओं से संबंधित कोई भी बदलाव लाना इतना असान नहीं है।
अपशबद, तिरस्कार झेलने पड़ते है स्वयं को कठोर करना पड़ता है तब जाकर पहाड़ थोडा डगमागाता है और यदि यह कार्य राजनीति में करना हो तो सामाजिक बहिष्कार के लिए भी तैयार रहना पड़ता है हमारा समाज अपनी गंदगी को गंदगी नहीं सुनना चाहता यह आपके साफ वस्त्रों पर कीचड उछाल कर आपको भी अपने जैसा बना देगा।
महिलाएं राजनीति में अधिक सम्मान की पात्र है क्यूंकि वह पुरूषो से अधिक संघर्षशील रही है हर कदम पर, वो शिकार है तो सिर्फ अपने स्त्रीत्व के कारण, महिलाओं का राजनीति में आना समाज को इतना क्यूँ खलता है, क्यूं हम अपनी गंदी धारणा छोड़ने में इतना शर्मिंदा महसूस करते है राजनीति की असहज गतिविधियां इसका एक कारण हो सकती है लेकिन वो असहजता स्त्रियों की झोली में ही क्यूँ आती है।
क्यूँ वो तथाकथित नारीवादी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और शोषण को लेकर मुँह नहीं खोलते, भारतीय राजनीति में सुधार चाहिए तो नारी के प्रति एक स्वच्छ एंव परिपक्व सोच को आगे लाना होगा, अन्यथा भारतीय राजनीति का भविष्य अधिक सुनहर नज़र नहीं आता।
– लेखिका अंकिता चौहान नई दिल्ली से हैं । सामाजिक एवं ज्वलंत मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं।