…इसलिए मनमोहन कहलाए, ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’?
बात करीब डेढ़ दशक पुरानी है, जब 2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सबसे बड़ा गठबंधन होने के नाते यूपीए का शीर्ष नेतृत्व जोड़तोड़ कर केन्द्र में सरकार बनाने का सपना साकार करने जा रहा था। सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री के रूप में ताजपोशी होना तय थी, लेकिन सोनिया गांधी का विदेशी मूल का होना भारी पड़ा। सरकार बनाने का दावा ठोंकने के लिये सोनिया गांधी के ने नेतृत्व में तमाम दलों के नेता राष्ट्रपति के पास पहुंचे भी, लेकिन जब यह लोग लौट कर आये तो नजारा पूरा बदल चुका था। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने कथित रूप से त्याग की मूर्ति बनते हुए अपनी जगह सरदार मनमोहन सिंह का नाम प्रधानमंत्री के रूप में आगे कर दिया, जबकि कांग्रेस में प्रणव मुखर्जी जैसा कद्दावर नेता मौजूद था, जिनकी अपनी अलग शख्सियत थी। प्रणव को कांग्रेस का ‘चाणक्य’ माना जाता था, उनकी राजनैतिक सूझबूझ गजब की थी, लेकिन दस जनपथ को पीएम की कुर्सी के लिये एक ऐसा नेता चाहिए था, जो देश से अधिक गांधी परिवार के लिए वफादार हो। गांधी परिवार की सोच के इस फ्रेम में मनमोहन सिंह बिल्कुल फिट बैठते थे। इसी लिये मनमोहन सिंह की प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ताजपोशी को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहा जाने लगा। 2004 के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद भी कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी। इस बार लग रहा था कि राहुल गांधी की पीएम के रूप में ताजपोशी हो जाएगी, लेकिन राहुल की अपरिपक्ता के कारण ऐसा हो नहीं पाया और एक बार फिर मनमोहन पीएम बन गये।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की पीएम की कुर्सी पर ताजपोशी को आधार बना कर ही फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की पटकथा लिखी गई है। अनुपम खेर ने रूपहले पर्दे पर मनमोहन सिंह की भूमिका को साकार किया है। सोनिया गांधी का रोल सुजैन बर्नर्ट ने निभाया है, जो एक टीवी शो में भी यह किरदार निभा चुकी हैं। फिल्म में राहुल गांधी की भूमिका में ब्रिटिश मूल के भारतीय कलाकार अर्जुन माथुर और प्रियंका के रोल में अदाकारा अहाना कुमारी हैं। 11 जनवरी को रिलीज होने जा रही है यह फिल्म। इसे दक्षिण के मशहूर डायरेग्टर विजय रत्नाकर गुट्टे ने डायरेक्ट किया है। संजय बारू ने ये किताब पीएमओ की नौकरी छोड़ने के लगभग छह साल बाद 2014 में लिखने की योजना बनाई थी। यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि संजय बारू के पिता भी मनमोहन सिंह के साथ काम कर चुके हैं। जब मनमोहन सिंह देश के वित्त सचिव थे, तब बीपीआर विठल उनके फाइनेंस और प्लानिंग सेक्रेटरी थे। संजय बारू मई 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार नियुक्त हुए और वह इस पद पर अगस्त 2008 तक रहे थे। उन्होंने साल 2008 में कुछ निजी कारणों से पद से इस्तीफा दे दिया था। 2014 में उन्होंने ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ किताब प्रकाशित कर राजनीति में उथल−पुथल ला दी थी। तक कुछ लोग संजय बारू के इस्तीफे को इस किताब से जोड़कर भी देख रहे थे। हालांकि संजय बारू बताते हैं कि उनके इस्तीफे और किताब का कोई संबंध नहीं था। वैसे, यह भी नहीं भुलाया जा सकता है कि भले ही संजय बारू ने 2004 से लेकर 2008 तक के अपने अनुभव के आधार पर ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ किताब लिखी थी,लेकिन मनमोहन सिंह पर ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ का ठप्पा काफी पहले 2004 में ही उनके पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही लग गया था।
‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के बारे में संजय बारू बताते हैं कि उन्होंने कभी मनमोहन सिंह का मीडिया सलाहकार रहने के दौरान किताब लिखने की प्लानिंग नहीं की थी। उनका मानना था कि यह स्वाभाविक है कि एक नेता या तो प्रशंसा का पात्र हो सकता है या फिर घृणा का, लेकिन उपहास का पात्र नहीं बनना चाहिए। संजय बारू ने लिखा है कि जब उन्होंने 2008 में पीएमओ की नौकरी छोड़ी, तब मीडिया मनमोहन सिंह की छवि काफी अच्छी थी। उन्हें सिंह इज किंग कहा जाता था। ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना ने निभाया है। महाराष्ट्र में यूथ कांग्रेस फिल्म का विरोध कर रहा है। ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में मनमोहन सिंह का किरदार निभा रहे अनुपम खेर का कहना है कि फिल्म का विरोध करने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा, द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर का जितना विरोध होगा, उतनी ही फिल्म को पब्लिसटिी मिलेगी। फिल्म की कहानी जिस किताब पर आधारित है, वो 2014 में आई थी। तब कोई विरोध क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा, हाल ही में राहुल गांधी जी का ट्वीट पढ़ा था, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उन्होंने बोला था। इसलिए मुझे लगता है कि राहुल गांधी को अब फिल्म का विरोध कर रहे, लोगों को डांटना चाहिए क्योंकि वे गलत कर रहे हैं।
– – संजय सक्सेना का आलेख साभार…