‘जिन देवी-देवताओं को देखा-जाना भी नहीं है, उनके पीछे हम सब पागल हैं’, पढ़िए जल दिवस’ का यह संदेश-
जिन देवी-देवताओं को हमने देखा-जाना भी नहीं हैं, उनके पीछे हम सब पागल है। उनके मंदिरों, इबादतगाहों और स्तुतियों ने हमारे जीवन का ज्यादातर हिस्सा घेर रखा है। जो जीवित देवी-देवता हमारी आंखों के आगे हैं और जो अनंत काल से हमारे लिए सब कुछ लुटाते रहे हैं, यदि हमने उनकी भी इतनी ही चिंता की होती तो हमारी यह दुनिया आज स्वर्ग से भी सुन्दर होती। ऐसे जीवित और वास्तविक देवी-देवताओं में ऊपर सूरज, नीचे धरती तथा जल और बीच में हवा है। यही चार प्रामाणिक देवी-देवता हैं जो सृष्टि की रचना भी करते हैं, पालन भी और विनाश भी। इनके बगैर पृथ्वी पर कोई भी जीवन संभव नहीं।
ऊपर का सूरज देवता हमारे नियंत्रण में नहीं। उसकी अपनी गति है जिसपर हम सब आश्रित हैं। अपनी इच्छा से वह हमें जीवन देता है और हमारा विनाश भी वह अपनी इच्छा से ही करेगा। हमारी धरती हमारी देखभाल की मोहताज़ नहीं। वह हमारी गन्दगी और कूड़े-कचरे भी अपने सीने में छुपाकर हमपर हरियाली और सौंदर्य लुटाती रही है। इसीलिए धरती को हम मां कहते हैं। बाकी दो देवी-देवता – हवा और जल ऐसे हैं जिन्हें हमारी सतत देखभाल, सम्मान और संरक्षण की ज़रुरत है। दुर्भाग्य से बेतरतीब शहरीकरण और औद्योगीकरण की पागल दौड़ में जिस विशाल स्तर पर हम हवा और पानी को प्रदूषित करने में लगे हैं, उससे पृथ्वी पर उसके जीवन का अबतक का सबसे बड़ा संकट उपस्थित है। जल के साथ हमारा समाज किस कदर बेरहम है, यह बताने की ज़रुरत नहीं है। हम अपनी नदियों और जलस्रोतों के साथ जैसा अनाचार और धरती के भीतर उपलब्ध जल की जैसी बर्बादी कर रहे हैं, उससे हमारी नदियां जहरीली भी हो रही है और सिकुड़ भी रही हैं। तालाब और जलाशय सूख रहे हैं। धरती के भीतर पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। पृथ्वी पर आने वाले जल संकट की आहटें साफ़ सुनाई देने लगी हैं। यदि समय रहते हम नहीं जगे तो विनाश बहुत दूर नहीं। कहा भी जा रहा है कि अब दुनिया का अगला विश्युद्ध भूमि या सत्ता के विस्तार के लिए नहीं, जल के लिए लड़ा जाएगा।
आज ‘जल दिवस’ पर हमें शुभकामनाओं की नहीं, चेतावनी की ज़रुरत है !
-लेखक ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस हैं और वरिष्ठ साहित्यकार हैं ।