सपा में बड़े बदलाव की तैयारी, कई नेताओं पर गिरेगी अखिलेश की गाज, छात्रसभा, युवजन सभा सहित सभी फ्रंटल होंगे भंग
लखनऊ । लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब सपा अपना चेहरा और रंग रूप बदलने जा रही है । सपा की प्रदेश कार्यकारिणी सहित सभी फ्रंटल संगठनों में बड़े बदलाव की तैयारी है । समाजवादी पार्टी हार से सबक लेते हुए अब अपने संगठन को मजबूती पर ध्यान देगी। साथ ही जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर भी संघर्ष करेगी। इसी के साथ ही प्रदेश कार्यकार्यकारिणी के नए सिरे से पुनर्गठन किया जाना है। सपा में पिछले साल ही नई कार्यकारिणी बन जानी थी, लेकिन सपा अध्यक्ष के निर्देश पर प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम व अन्य पदाधिकारी चुनाव में व्यस्त होते गए। इस कारण नई कार्यकारिणी बनाने का काम टलता रहा और जब चुनाव सर पर आ गए तो इसके बजाए पूरा फोकस बसपा से गठबंधन तैयार करने में हो गया। अब सपा के सामने उन लोकसभा चुनाव क्षेत्रों पर ध्यान देना है जिसे उसने गठबंधन के चलते अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। इस कारण उस जिले में कई कार्यकर्ता ढीले पड़ गये या दूसरे दलों में चले गये। अब इलाकों में अपने नेताओं कार्यकर्ताओं को एकजुट कर संगठनात्मक गतिविधियों को तेज करने की चुनौती है। इसके बाद ही प्रदेश कमेटी का गठन होना है।
इसके अलावा चारों फ्रंटल संगठन समाजवादी छात्र सभा, समाजवादी युवजन सभा, मुलायम सिंह यूथ बिग्रेड व लोहिया वाहिनी का भी नए सिरे से गठन किया जाना है। इन सगठनों की सुस्ती से पार्टी को लोकसभा चुनाव में अपेक्षित मदद नहीं मिल सकी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों कार्यकर्ताओं व नेताओं से मुलाकात कर अलग-अलग सीटों पर हार के कारणों पर चर्चा कर रहे हैं। उन्हें बसपा के साथ गठबंधन करने से नफा नुकसान दोनों का भी अलग-अलग फीडबैक मिल रहा है। सपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अब पार्टी को आगे के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। इसी साल विधानसभा उपचुनाव होने हैं। इसे जीतने के लिए पार्टी को भाजपा के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाना होगा। आने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में भी सपा प्रदेश सरकार को घेरेगी।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी लोकसभा चुनाव में सपा की परफार्मेंस से खासे नाखुश हैं और उन्होंने संगठन की मजबूती, पुराने नेताओं को तवज्जो देने व कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की बात कही है। बताते चलें कि सपा के लिए इस बार के नतीजे बेहद निराशाजनक रहे हैं। खुद मुलायम परिवार के तीन सदस्य चुनाव हार गये। गठबंधन करके भी सपा को उतनी सीटें मिलीं जितनी 2014 में अकेले लड़ कर जीती थीं।