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November 22, 2024
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भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है, कितना चलेगा मोदी कार्ड

  • September 9, 2018
  • 1 min read
भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है, कितना चलेगा मोदी कार्ड

दिल्ली| जिन मुद्दों पर बाहर चर्चा हो रही है चाहे वह महंगाई हो, पेट्रोल के दाम बढ़ने की बात हो, रुपये का गिरना हो या दलितों के साथ अत्याचार की ख़बरें हों. इन सभी की जानकारी भाजपा कार्यकर्ता से लेकर ऊपर बैठे नेताओं तक को है.
जिस तरह से पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, उससे कार्यकर्ताओं के बीच भी एक तरह का आक्रोश है.यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के देवरिया से सांसद कलराज मिश्र जैसे अहम व्यक्ति को यह ट्वीट करना पड़ता है कि हमें सवर्णों और अगड़ों का भी ध्यान रखना चाहिए और एकतरफ़ा नीति नहीं बनानी चाहिए.इसलिए जितने भी मुद्दे देश में चल रहे होते हैं उनकी चर्चा पार्टी में अंदर ही अंदर ज़रूर होती है. लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी जैसे मंचों पर अब इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा बंद हो गई है.एक ज़माने में देश में चल रहे मुद्दों पर खुलकर चर्चाएं होती थीं, तीखी आलोचनाएं होती थीं और ये आलोचनाएं पत्रकारों तक भी पहुंच जाती थीं. लेकिन आज के समय में तो इन बैठकों में बस अच्छी-अच्छी सुनाई देने वाली बातें ही हो रही हैं.
अमित शाह का सिर्फ़ एक ही लक्ष्य बना हुआ और वो है कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखना जिससे भाजपा पिछले चुनाव में जितनी सीटें जीतकर सत्ता में आई थी, इस बार उससे ज़्यादा सीटें जीते.
सरकार से नाराज़गी की वजहें–
डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है, इसका सबसे अधिक असर छात्रों पर पड़ेगा.2014 से पहले नरेंद्र मोदी अपने हर भाषण में रुपये के गिरने का ज़िक्र बार-बार करते थे और इसका असर भी पड़ा.यही वजह थी कि उस समय देश के युवाओं, छात्रों और नौकरी की तलाश कर रहे बेरो़ज़गारों ने मोदी के नाम पर भाजपा को वोट किया था.
इन सभी को कहीं न कहीं एक विश्वास हो रहा था कि अच्छे दिन शायद आने वाले हैं. और अब हाल यह है कि अब ये अच्छे दिन वाला नारा ही भाजपा को उल्टा चुभ रहा है.उत्तर प्रदेश और दूसरी जगहों पर इस नारे का मज़ाक बनाया जा रहा है.इसके साथ ही मोदी सरकार से किसान बहुत अधिक नाराज़ हैं. किसानों को ऐसा लग रहा है कि उन्हें उनकी फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा.हालांकि इस मामले में हम सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते. सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया है. बड़ा सवाल यह है कि किसानों तक यह मूल्य पहुंचता है या नहीं.
क्या मोदी का चेहरा चलेगा–
अगर आगामी प्रदेश चुनावों का ज़िक्र करें तो भाजपा के रणनीतिकार यही कहते हैं कि हमारे पास मोदी कार्ड है और अंत में वही काम करेगा.
कर्नाटक जैसे राज्य तक में मोदी के चेहरे ने काम किया, हालांकि पूरी तरह वहां पार्टी सफल नहीं हुई और उसे बहुमत नहीं मिल पाया.मैं कर्नाटक चुनाव कवर कर रही थी तब भी लगा था कि मोदी की रैलियों ने चुनाव का माहौल भाजपा की तरफ़ करने का काम किया था.ऐसे में इतना तो साफ़ है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा मोदी कार्ड ही खेलेगी.तब हमें यह देखना होगा कि राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जहां भाजपा 15 साल से सरकार में है वहां मोदी सत्ता विरोधी लहर को रोक पाते हैं या नहीं.जैसे गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी भाजपा को जिताने में तो कामयाब रहे, लेकिन उतनी बड़ी जीत नहीं दिलवा सके जितनी उनसे अपेक्षा थी.
इसी तरह सुनने को मिल रहा है कि राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर बहुत अधिक है, तो क्या मोदी फ़ैक्टर उसे दूर कर पाएगा. वो भी तब जब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने-आप में काफी बड़ी नेता हैं.
अगर हम साल 2003-04 में अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में जाएं जब भाजपा ही सत्ता में थी और वह चुनाव की तैयारी कर रही थी. उस समय भी भाजपा काफ़ी मज़बूत नज़र आ रही थी. पार्टी का आत्मविश्वास ख़ासा ऊपर था. पार्टी के पास प्रमोद महाजन जैसे चतुर राजनीतिक रणनीतिकार थे.
मैंने उस समय उत्तर प्रदेश को काफ़ी कवर किया था और पाया था कि स्थानीय कार्यकर्ताओं का मनोबल काफ़ी नीचे था, उन्हें लगने लगा था कि वे हारने वाले हैं.उस समय आरएसएस ने भी भाजपा के साथ पूरी तरह सहयोग नहीं किया था क्योंकि आरएसएस और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच बहुत से मतभेद थे
मौजूदा समय में भी स्थानीय कार्यकर्ता निराश और हताश दिख रहा है, फ़र्क यह है कि अभी आरएसएस नरेंद्र मोदी से ऊबी नहीं है.
वैसे अभी कुछ भी कहना बहुत जल्दबाज़ी होगी. जितना बड़ा जनादेश साल 2014 में भाजपा को मिला था, उससे वह कितना नीचे गिरेगी या ऊपर उठेगी, इसका अंदाज़ा अभी नहीं लगाया जा सकता.
साभार -राधिका रामाशेषन