सेंट्रल जेल में #योगी ने किया आजाद की प्रतिमा का अनावरण
लखनऊ | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को सेंट्रल जेल परिसर में शहीद चंद्रेशेखर आजाद की धातु से बनी आदमकद प्रतिमा का अनवारण किया। सेंट्रल जेल के अंदर जाते दाहिने तरफ वह बैरक है, जहां आजाद महज 15 वर्ष उम्र में अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाये गये थे। चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा सरकारी पैसे से नही बल्कि लोगों के सहयोग से बनवायी गई है। कैदियों से ले कर जेल स्टाफ और बाहरी लोगों ने इसमें योगदान दिया है। लाल पत्थर (मेटल) से बने स्मारक का अनावरण पीएम नरेंद्र मोदी से कराने की कोशिश हो रही थी, लेकिन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से समय लिया गया। वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के समर्थन में देशभर में धरना-प्रदर्शन हो रहे थे। तब चंद्रशेखर आजाद काशी विद्यापीठ के छात्र थे। वे 15-20 छात्रों को लेकर दशाश्वमेध घाट रोड पर विदेशी वस्त्र की दुकान के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। इसकी सूचना पर पहुंची पुलिस ने लाठियां भांजीं। लाठियों से बचते हुए उनके मित्र इधर-उधर फैल गये लेकिन आजाद अपनी जगह पर खड़े रहे। एक दरोगा लोगों पर बेरहमी से डंडे बरसाने लगा। चंद्रशेखर आजाद से यह देखा नहीं गया और उन्होंने दरोगा को पत्थर मारा जिससे वह घायल होकर गिर पड़ा। पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर थाने ले गयी।
दिसंबर की कड़ाके की ठंडी रात थी। चंद्रशेखर को ओढ़ने-बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया। पुलिस का ऐसा सोचना था कि यह लड़का ठंड से घबरा जाएगा और माफ़ी मांग लेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह देखने के लिए कि लड़का शायद वह ठंड से ठिठुर रहा होगा, आधी रात को थानेदार ने चंद्रशेखर की कोठरी का ताला खोला। वह देखकर चकित रह गया कि चंद्रशेखर दंड-बैठक लगा रहे थे। कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से तर-बतर थे।
दूसरे दिन चंद्रशेखर आजाद को न्यायालय में पेश किया गया। जब मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद, मां का नाम धरती और पिता का नाम स्वतंत्रता बताया। घर का पता जेलखाना बताया। मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुना दी। उन्हें सेंट्रल जेल ले जाया गया। जेलर आजाद की पीठ पर कोड़े बरसाता रहा और वह भारत माता के जयकारे लगाते रहे। इस घटना के बाद सुर्खियों में आए आजाद को जेल से रिहा होने के बाद लोगों ने कंधे पर बिठाकर शहर में घुमाया था। सेंट्रल जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक अंबरीष गौड़ ने बताया कि हर साल 23 जुलाई को उनका जयंती समारोह आयोजित किया जाता है।
सेंट्रल जेल में जब चंद्रशेखर आजाद को कोड़े मारे जा रहे थे और उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद बताया था। वर्तमान में कोड़े मारने वाले स्थान पर एक शिलापट्ट पर उनकी गाथा के साथ उनकी तस्वीर है। जेल के बाहर भी उनकी प्रतिमा पहले से स्थापित है। कोड़े की सजा के बाद काशीवासियों ने ज्ञानवापी क्षेत्र में आयोजित एक सभा में तत्कालीन किशोर क्रांतिकारी चंद्रशेखर तिवारी को चंद्रशेखर आजाद नाम से पुकारा। उनकी स्मृति में लहुराबीर इलाके में आजाद पार्क भी है। चंद्रशेखर किशोरावस्था में संस्कृत की पढ़ाई करने बनारस आ गए थे। बनारस में ही मन्मथनाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क के रहकर चंद्रशेखर आजाद सबसे पहले क्रांतिकारी दल के सदस्य बने। जिसे उस वक्त हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ के नाम से पुकारा जाता था।