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शशांक मिश्रा/इलाहाबाद |जलभराव, सड़कों की मरम्मत और यातायात में आने वाली दुश्वारियों के साथ बिजली, अस्पताल, थानों और स्कूलों से सम्बन्धित वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए मण्डल के सभी जिलाधिकारियों और विभागीय अधिकारियों को मण्डलायुक्त डाॅ0 आशीष कुमार गोयल ने कड़े तेवरों के साथ सजग करते हुए उनकी कार्य प्रणाली और प्रगति की बारीकी से समीक्षा आज अपने कार्यालय स्थित गांधी सभागार में की। मण्डलायुक्त वर्तमान मौसम और भारी बारिश की चुनौतियों के सापेक्ष नगरों और कस्बों के साथ ग्रामीण इलाकों में भी जलभराव और यातायात में अवरोध की समस्या पर काफी गम्भीर दिखे। उन्होंने कहा कि मौसम के चलते शहरों के साथ-साथ गावों में भी जलभराव और सड़कों पर पेड़ गिरने से यातायात की बाधाओं को किसी भी हाल में प्रशासन द्वारा नजरअंदाज न किया जाय।
उन्होंने सभी जिलाधिकारियों और विभागीय अधिकारियों को गम्भीरता के साथ तत्काल निरीक्षण और ऐक्शन में जुट जाने के निर्देश दिये तथा यह हिदायत दी कि रूटीन की कार्यशैली से अलग हटकर व्यक्तिगत रूप से और जिम्मेदारी के साथ यह सुनिश्चित कराया जाय कि भारी बारिश के चलते शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी जलभराव और यातायात की समस्या का मौके पर जाकर निरीक्षण तुरंत किया जाय और क्षेत्रीय स्तर पर ही उसका तत्काल समाधान कराया जाय। इसके लिये मण्डलायुक्त ने ग्रामीण स्तर के राजस्वकर्मी यथा लेखपाल, ग्राम पंचायत अधिकारी, अमीन आदि को ऐसी जनसमस्याओं की तत्काल सूचना देने तथा क्षेत्रीय स्तर पर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लिये जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने का निर्देश बैठक में जिलाधिकारियों को दिया। मण्डलायुक्त ने जिलाधिकारियों, मुख्य विकास अधिकारियों और अन्य अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी है कि वे राजस्वकर्मियों को अपने कार्य के साथ किसी भी आपात अवस्था, प्राकृतिक आपदा, जलभराव, विद्युत सम्बन्धी अव्यवस्था या दुर्घटना आदि जनसमस्याओं की सूचना भी समय से देने के लिये उत्तरदायी बनायें तथा क्षेत्रीय स्तर पर ग्राम पंचायत एवं क्षेत्र पंचायत स्तर पर उपलब्ध बजट संसाधनों के द्वारा ही इन समस्याओं का तत्काल निस्तारण भी सुनिश्चित करायें। उन्होने जोर देकर यह भी कहा कि शहरी और उपनगरीय स्तर की बस्तियों में तो प्रशासन की नज़र तत्काल पड़ जाती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में इन समस्याओं की सूचना भी समय से नहीं मिल पाती और किसी कारण उन पर कार्रवाई भी समय से नही, हो पाती है। इसलिये आज से यह व्यवस्था सुनिश्चित करायी जाय कि सभी उच्च अधिकारी अपने क्षेत्र में लेखपाल, ग्राम पंचायत अधिकारी, अमीन आदि को मौके पर मोबाईल रखें तथा उन्हंे जिम्मेदार बनाकर ऐसी समस्याओं की सूचना देने तथा उनका निस्तारण कराने के लिये समन्वयक के तौर पर जिम्मेदार बनाने की कवायद शुरू करें।
कमिश्नर ने प्रशासनिक अधिकारियों को आगाह कराया कि टेबल के सामने खड़े आदमी के दर्द को समझने की कोशिश करेंगे तो संबन्धित कार्रवाई अपने आप दिमाग के साथ-साथ दिल से भी होगी। मुख्यमंत्री और शासन हमसे इसी प्रकार का उत्तरदायित्व चाहता है। उन्होंने तहसील दिवसों, थाना समाधान दिवसों और आईजीआरएस के तहत पंजीकृत शिकायतों की समीक्षा करते हुए जिले के सभी अधिकारियों को हिदायत दी की केवल संख्या बढ़ाने के लिये निस्तारण की औपचारिकता निभाने के स्थान पर शिकायतकर्ता की भावनाओं को सहानभूतिपूर्वक समझकर नियमानुसार कार्रवाई तत्काल सुनिश्चित करायें तथा उसकी सही रिपोर्ट शासन को भेजें। उन्होंने सभी जनपदों के जिलाधिकारी एवं मुख्य विकास अधिकारी की इस कार्य में सीधी जिम्मेदारी निर्धारित करते हुए यह निर्देश दिया कि शासन की जो मंशा जनशिकायतों के बारे में व्यक्त की जा रही है, उसको प्रशासन के बिल्कुल निचले स्तर तक सीधे तौर पर पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाएं तथा यह ध्यान रखें कि यदि कोई जरूरतमंद थक हार कर प्रशासन का दरवाजा खटखटा रहा है तोे जरूर उसकी तकलीफ ध्यान देने योग्य है तथा मामले की तह में जाकर उसका त्वरित निस्तारण किया जाना जरूरी भी है और हमारा कर्तव्य भी। उन्होंने अधिकारियों को बड़े मार्मिक ढंग से यह समझाया कि फरियाद लेकर आने वाले आम आदमी को अपनी कुर्सी की तरफ से नहीं बल्कि जिस तरफ आम आदमी खड़ा है, उस तरफ खड़े होकर उसकी जरूरत को समझने की कोशिश करें और शिकायतों के बारे में दिमाग के साथ-साथ दिल से भी काम लें।
कमिश्नर ने तहसील और थाना दिवसों में शिकायत सुनवाई की प्रक्रिया को अलग-अलग पटलवार बांट कर सुनने तथा अधिकारियों को उसी समय आवेदन पत्र पर निस्तारण की स्पष्ट कार्रवाई अंकित करते हुए अधीनस्थांे को भेजने की बात कही। उन्होंने कड़ाई से याद दिलाया कि राजस्व मामलों का निस्तारण प्रदेश की जन शिकायतों का बहुत बड़ा भाग हल कर सकता है तथा अपने न्यायालयों में बैठकर या तहसील दिवस, थाना समाधान दिवस अथवा अपने कार्यालय में प्रतिदिन जनशिकातयों के निस्तारण का कार्य हमारे कुल कार्य का न्यूनतम 80 प्रतिशत होना चाहिए तभी जनता की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान हो पायेगा।