जम्मू-कश्मीर में सरकार सभी आदेशों की सात दिन में समीक्षा करे, पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
नई दिल्ली | जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट समेत कई पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुना दिया है। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि जम्मू कश्मीर सरकार एक सप्ताह के भीतर सभी प्रतिबंधात्मक आदेशों की समीक्षा करे। कोर्ट ने प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा। साथ ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन से प्रतिबंध लगाने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने और उन्हें सार्वजनिक करने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल उपकरण के तौर पर नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कश्मीर में बहुत हिंसा हुई है। हम सुरक्षा के मुद्दे के साथ मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे। इंटरनेट पर एक समयसीमा तक ही रोक लगना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह कोई संदेह नहीं है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बोलने की स्वतंत्रता अनिवार्य तत्व है। इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत एक मौलिक अधिकार है।
केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था। केंद्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी। गुलाम नबी आजाद के अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य ने घाटी में संचार व्यवस्था ठप होने सहित अनेक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थीं।
अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने वाले किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल अनिश्चित काल तक नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा जारी करते समय इसपर विचार करना चाहिए और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी।
केंद्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का हवाला देते हुए कहा था कि कई सालों से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जाता था, स्थानीय उग्रवादी और अलगावादी संगठनों ने पूरे क्षेत्र को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में अगर सरकार नागरिकों की सुरक्षा के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाती तो यह मूर्खता होती। केंद्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म कर दिए थे। इसके बाद जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभक्त हो गया था- लद्दाख और कश्मीर।