उत्तर प्रदेश के रामपुर में दो लड़कियों के साथ घटी घटना का वीडियो देखने के बाद यक़ीन हो गया कि हम मानव इतिहास के सबसे बर्बर समय में जी रहे हैं। जिस तरह चौदह लड़के सरेराह दो डरी हुई लड़कियों के जिस्म के साथ पाशविक खेल खेल रहे थे, वह खून को जमा देने वाला वाक़या था। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इस घटना के वीडियो को पूरा नहीं देख सकता। सिर्फ टीआरपी के भूखे बेहया न्यूज़ चैनल ही चटखारे लेकर बार-बार उसे दिखा सकते हैं। उस घटना से भी शर्मनाक यह था कि वहां मौजूद लोग महज़ तमाशबीन बने रहे। वे शायद उस वीभत्सता में भी अपना मनोरजन ढूंढ रहे थे। कुछ तो पूरी घटना का वीडियो भी बनाने में लगे थे। किसी अश्लील साइट पर अबतक ऐसे कई वीडियो अपलोड भी किए जा चुके होंगे।
किसी को भी यह ख्याल नहीं आया कि वो दोनों लडकियां किसी की बेटियां और बहनें भी हैं। किसी को डर नहीं लगा कि कल उनकी अपनी बहनों-बेटियों के साथ भी ऐसी पाशविकता हो सकती है। उन दोनों लड़कियों की चीखों और मिन्नतों से किसी की भी संवेदना नहीं जगी। किसी के भी खून में उबाल नहीं आया। और हम जो वहां मौजूद नहीं थे, वे भी उत्तर प्रदेश में जंगल राज कह कर थोड़े दिनों में इस घटना को भूल जाएंगे। प्रदेश की पुलिस कुछ महीनों से वहां घट रही अपराध की अंतहीन घटनाओं के आगे अगर बेबस और लाचार नज़र आती है तो यह अचानक तो नहीं हुआ होगा।
ये घटनाएं बताती है कि प्रदेश की सरकारों ने उसे किस क़दर सियासी, कायर और श्रीहीन बना दिया है। अब वहां पुलिस से कोई नहीं डरता। दो टके के नेता भी उसे थप्पड़ मारकर चले जाते हैं और दो टके के अपराधी भी। बावजूद इसके रामपुर की यह घटना एक सवाल तो छोड़ ही जाती है कि क्या सड़कों पर, गलियों में, खेतों में और यहां तक कि घरों में भी स्त्रियों की इज्जत और अस्मिता की हिफ़ाज़त करना सिर्फ सरकार और पुलिस का ही दायित्व है ? हम उनकी लुटती हुई इज्जत का तमाशा देखने और उसका वीडियो भर बनाने के लिए है ? प्रदेश के जंगल राज से छुटकारा देर-सबेर शायद मिल भी जाय, क्या हम खुद अपने भीतर के जंगल राज से कभी मुक्त भी हो पाएंगे ?
-ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस के फेसबुक वाल से