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हरियाणा: ‘चमत्कार’: मरने के बावजूद परीक्षा देने पहुंची चार महिलाए

  • September 7, 2017
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हरियाणा: ‘चमत्कार’: मरने के बावजूद परीक्षा देने पहुंची चार महिलाए
क्या कोई मरने के बाद भी परीक्षा देने पहुंच सकता है? जाहिर सी बात है, आप भी कहेंगे नहीं… लेकिन हरियाणा के ओढां में कुछ ऐसा ही ‘चमत्कार’ हुआ है। बडागुढ़ा खंड के एक गांव छतरियां में एक व्यक्ति सहित और चार महिलाओं सहित पांच लोगों ने मरने के कई वर्ष बाद साक्षरता अभियान के तहत परीक्षा दी है। ये परीक्षा मृत लोगों ने अकेले नहीं दी अपितु गांव की अन्य महिलाओं के साथ दी है। सुनने में भले ही अजीब लग रहा होगा लेकिन ये क ारनामा कर दिखाया है ग्राम पंचायत, बीडीपीओ कार्यालय और साक्षरता अभियान के पत्र प्रेरकों ने।
मामला सामने आने पर अब इस पर लीपापोती शुरू हो गई है। इस मामले में अधिकारियों ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है। दरअसल छतरियां के एक आरटीआई कार्यक र्ता भजनलाल ने ग्राम पंचायत से गांव में साक्षर भारत मिशन के तहत प्रेरकों द्वारा साक्षर किए गए लोगों की सूची मांगी गई थी। आरटीआई का जवाब आया कि गांव में वर्ष 2013 से अब तक 203 महिलाएं साक्षर की गईं।

आरटीआई कार्यकर्ता ने जब उक्त महिलाओं का लिस्ट से मिलान किया तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई कि मृत महिलाओं ने भी परीक्षा दी है। उक्त महिलाओं में से चार ऐसी महिलाओं का भी उल्लेख किया गया है, जिनकी कई वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है। यानि कि उक्त महिलाएं मरने के बावजूद गांव में परीक्षा देने आईं। दूसरी रोचक बात ये सामने आई है कि बीडीपीओ, पूर्व सरपंच, मौजूदा सरपंच और स्कूल के इंचार्ज ने भी ये तस्दीक की है कि उक्त महिलाएं मरने के बावजूद भी परीक्षा देने आई थीं।

मामकोरी की 6 अक्तूबर 2013 को व तक्खी देवी की मृत्यु 30 सितंबर 2013 एवं मीरां देवी की मृत्यु 22 अक्तूबर को हुई थी। उक्त तीनों महिलाओं ने मृत्यु होने के बावजूद अगस्त 2016 में परीक्षा दी। इसके अलावा रूक मा देवी की मृत्यु 15 दिसंबर 1996 को हुई थी, जिसने अगस्त 2015 में साक्षर भारत मिशन के तहत परीक्षा दी। इसके अतिरिक्त गांव के ही एक व्यक्ति भैंरू राम की मृत्यु भी जनवरी 2012 में हुई थी।
उसने भी 9 मार्च 2014 में रविवार के दिन परीक्षा दी। उक्त व्यक्ति  की चार पेज की उत्तर-पुस्तिका भी सामने आई हैं। ये क्रम यहीं नहीं रुका, आरटीआई में ऐसी महिलाओं को भी साक्षर होना दिखाया गया है जो कई तो अंग्रेजी में भी हस्ताक्षर करती हैं तो कुछ स्वयं काफी पढ़ी-लिखी हैं। गांव की महिला कमला देवी ने बताया कि उसने सातवीं तक शिक्षा ग्रहण की है, लेकिन उसे भी नवसाक्षर दिखाया गया है।
मार्च 2015 में दी गई आरटीआई की जानकारी में पूर्व सरपंच विनोद कुमार ने जो हाजिरी रजिस्टर का ब्योरा दिया है उसमें मृतका रूकमा देवी की कोई हाजिरी नहीं लगाई गई, जबकि उसे परीक्षा में बैठा दिया गया। वहीं मृतका मीरां देवी की कोई हाजिरी नहीं लगाई गई, जबकि रोल नंबर लिस्ट में उसे रोल नंबर 17 देकर परीक्षा में बैठाया गया है। इसी तरह मामकोरी का रोल नंबर लिस्ट में तो नाम है, लेकिन हाजरी रजिस्टर में उसकी का कोई उल्लेख नहीं किया गया। यानि प्रेरक, सरपंच और बीडीपीओ तक ने इस साक्षरता मिशन को पलीता लगाने में कोई कसर तक नहीं छोड़ी।
गांव के कलम सिंह ने बताया कि उसकी पत्नी रूकमा देवी की मृत्यु 15 दिसंबर 1996 को हुई थी, लेकिन उसकी पत्नी को अगस्त 2015 में परीक्षा देते दिखाया गया है। इसकी तसदीक पूर्व सरपंच विनोद कुमार व मौजूदा सरपंच नंदराम तथा तत्कालीन बीडीपीओ कर चुके हैं कि रूकमा देवी परीक्षा में बैठी थी। कलम सिंह का कहना है कि जब उसकी पत्नी परीक्षा देने के लिए आई थी तो उससे एक बार मिलवा तो दिया होता। कलम सिंह ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि उसकी पत्नी को मरने के बावजूद भी कागजों में दिखाकर उसकी आत्मा को दुखी करने का काम किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर इस विषय में प्रशासन ने आरोपी लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो वह न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा।
परीक्षा तो कुछ मेरे समय में हुई थी और कुछ मौजूदा सरपंच के समय में हुई हैं। हमारे पास तो प्रेरक या अन्य कोई कागज लेकर आता तो हम हस्ताक्षर कर देते। घूंघट में किस तरह से महिलाओं की पहचान हो कि उक्त महिला कौन है। इस मामले में मेरा कोई कसूर नहीं हैं, पढ़ाने वाले और परीक्षा लेने वाले लोग जिम्मेवार हैं। दूसरा पंचायत को इस बारे पता भी नहीं था कि कौन-कौन साक्षर हो रहा है। गलती प्रेरकों की है।
मुझे तो इतना ही पता है कि  पेपर लिए गए थे। किसने लिए, इसका इंचार्ज कौन है इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं। इस पूरे मामले में मेरी कोई गलती नहीं। हां मैंने तस्दीक तो की थी। इसके अलावा आरटीआई में जो जानकारी दी गई है उस पर मैंने हस्ताक्षर भी किए थे। अगर इस मामले में पूर्व सरपंच या अन्य किसी ने गलती की है तो उसकी जांच होनी चाहिए।