बेबाक, निष्पक्ष, निर्भीक
November 22, 2024
साक्षात्कार

‘नदियों के पैरोकारों में कई ‘बाबा राम-रहीम’, पढ़िए राजेंद्र सिंह का यह इंटरव्यू

  • November 10, 2017
  • 1 min read
‘नदियों के पैरोकारों में कई ‘बाबा राम-रहीम’, पढ़िए राजेंद्र सिंह का यह इंटरव्यू

देश में नदियां भी अब राजनीतिक दलों के लिए वोट का जरिया बनती जा रही हैं, कोई गंगा की बात कर रहा है तो कोई नर्मदा और कोई सारे देश की नदियों की। नेताओं के साथ बाबाओं के आने से सवाल उठ रहे हैं। स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित और ‘जलपुरुष’ के तौर पर चर्चित राजेंद्र सिंह भी नेताओं के साथ खड़े हो रहे बाबाओं से चिंतित हैं, उनका मानना है कि इन बाबाओं में भी कई ‘राम रहीम’ और ‘आसाराम बापू’ जैसे साबित होंगे।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एकता परिषद द्वारा भूमिहीनों के मुद्दे को लेकर आयोजित जन-संसद में हिस्सा लेने आए राजेंद्र सिंह ने बुधवार को आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, “देश के राजनेता यह जान चुके हैं कि नदियों की बात करके वोट हासिल किए जा सकते हैं, उन्हें इस बात का भी अंदाजा है कि वे नदियों का भला नहीं कर सकते, परंतु कुछ सद्गुरुओं और बाबाओं को आगे करके नदियों को ठीक करने का ढोंग जरूर रचा जा सकता है।”

सिंह ने आगे कहा, “यह ढोंग ठीक वैसा ही है, जैसा एक जमाने में आसाराम बापू, राम रहीम, रामपाल, फलाहारी बाबा का रहा है। इन बाबाओं की नेताओं से खूब नजदीकियां रहीं और उनका बाबाओं के आश्रम में खूब आना-जाना होता रहा। इससे एक तरफ बाबा प्रतिष्ठित हुए, तो वहीं नेताओं को उसका राजनीतिक लाभ मिला। जब इनकी सच्चाई सामने आई, तो नेताओं ने दूरी बना ली।”
जलपुरुष का कहना है, “कुछ बाबाओं की वास्तविक तस्वीर सामने आने पर राजनेताओं ने फिर कुछ ऐसे नए चेहरे ढ़ूढ़ना शुरू किए, जिन्हें लोग जल्दी से पकड़ न सकें। अब ऐसे बाबा नदियों के बड़े पैरोकार बनकर सामने आ रहे हैं। उन्होंने गंगा, कावेरी, गोदावरी, कृष्णा और नर्मदा नदी के नाम पर अपने-अपने खेल शुरू किए हैं। एक बाबा ने तो देश की सारी नदियों केा ठीक करने का खेल शुरू किया है।”

सिंह का मानना है, “नदियों के पैरोकार बनकर सामने आ रहे नए-नए बाबाओं में से कुछ आने वाले दिनों में कई बाबा राम-रहीम साबित होंगे। इससे नदियां तो ठीक नहीं होंगी, लेकिन नदियों से लोगों के रिश्ते जरूर टूटेंगे। इन बाबाओं से रहा सहा विश्वास उठेगा और समाज नदियों को नाले की तरह देखने लगेगा।” सिंह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जब नदी को ठीक करने के लिए आगे आ रहे बाबाओं की हकीकत सामने आएगी, तब तक भारत देश का बहुत कुछ बिगड़ जाएगा। बाबाओं का बिगड़ेगा या नहीं, ये तो मैं नहीं जानता, लेकिन नदियों, राज और समाज की बहुत हानि हो चुकी होगी। उस हानि की क्षतिपूर्ति करना संभव नहीं होगा।

देश में नदियों और संतों के संबंधों का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा, “हम जानते हैं कि संतों का नदियों के साथ सबसे गहरा संबंध और सबसे बड़ी जिम्मेदारी रही है, वे ही राज और समाज के लालची और नदियों से भोगीपन को रोककर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रिश्ता नदियों के साथ मजबूत करते थे। अब ये बाबा उन रिश्तों को तुड़वाकर लालची और भोगी जैसा व्यवहार नदियों से करने लगे हैं।”
राजेंद्र सिंह कहते हैं कि वे चिंतित हैं कि एक तरफ नदियां सूख रही हैं, अविरलता थम रही है। दूसरी ओर राजनीति करने वाले नदियों के क्षेत्र में भी ढोंगियों की हिस्सेदारी बढ़ाने में जुट गए हैं। यह आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छा साबित नहीं होगा।