जरुर पढ़ें कासगंज : जीत का फार्मूला, भारत-भारत, पाकिस्तान–पाकिस्तान की कबड्डी !
पता नहीं राघवेंद्र विक्रम सिंह ने क्या सोच कर योगी राज में दुस्साहस दिखाया? माना वे सेना की (एसएसबी) बैकग्राउंड लिए आईएएस अफसर हैं। मगर ठाकुर लगते हैं और उन्हे योगीजी ने बरेली में डीएम बना कर बैठाया है तो जाहिर है पीछे राजपूत भाईचारे की सोच होगी। यों भी इन दिनों यूपी में चौतरफा चर्चा है कि योगीजी छांट-छांट कर राजपूत अफसरों को जिलों की कमान दे रहे हंै। डीएम-एसपी की नियुक्तियों में राजपूत बाहुल्यता ऐसी बनी है कि लोगों को मुलायमसिंह के यादव और मायावती के दलित राज की याद हो आई है। योगीजी का भगवा राज कुल मिला कर पसंदीदा ठाकुरों का है। तब भला क्यों बरेली के ठाकुर डीएम ने गुस्ताखी की? उन्होने क्या गजब हैरानी कासगंज हिंसा की बाद जताई। उन्होने लिखा – “ अजब रिवाज बन गया है। मुस्लिम मौहल्लों में ज़बरदस्ती जलूस ले जाओ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाओ। क्यों भाई वे पकिस्तानी हैं क्या? ? यही यहां बरेली में खैलम में हुआ था. फिर पथराव हुआ, मुकदमे लिखे गए …”
सोचें योगी राज के एक डीएम का तिरंगा यात्रा निकालने वालों पर ऐसा सवाल! जाहिर है डीएम को यह भी पता नहीं कि यही तो आज की राजनीति में जीतने का वह रामबाण नुस्खा है जो घर-घर पैंठ रहा है। यही तो सियासी अखाड़े का वह खेल है जो सवा सौ करोड़ लोगों को लगातार उत्प्रेरित कर रहा है कि आओ कबड्डी हो भारत, भारत और पाकिस्तान, पाकिस्तान की! फिलहाल इस खेल की बारीकी में न जाएं और इसी बात पर फोकस रखें कि उत्तरप्रदेश के एक डीएम ने अपनी फेसबुक पोस्ट से जो हैरानी जाहिर की है उसे क्या आओ खेलंे भारत, पाकिस्तान के खेल का निर्मम पोस्टमार्टम नहीं मानें?
तभी नौबत आई जो पोस्टमार्टम की पोस्ट लिखने के बाद डीएम को उस पोस्ट को हटा नई पोस्ट लिख माफी मांगनी पड़ी। उन्होने फिर मुलम्मा चढ़ाते हुए लिखा- हमारी पोस्ट बरेली में कांवड़ यात्रा के दौरान आई Law n order की समस्या से सम्बंधित थी। I had hoped there will be academic discussion but unfortunately it had taken a different turn . Extremely sad .हम आपस में चर्चा इसलिए करते हैं कि हम बेहतर हो सकें। ऐसा लगता है कि इससे बहुत से लोगों को आपत्ति भी है और तकलीफ भी। हमारी मंशा कोई कष्ट देने की नही थी। संप्रदायिक माहौल सुधारना प्रशासनिक एवं नैतिक जिम्मेदारी है हम लोगों की। …. देश के लिए हमारे प्रदेश हमारे जनपद के लिए पाकिस्तान शत्रु है …इसमे कोई सन्देह नही। हमारे मुस्लिम हमारे हैं .. इसमे भी कोई संदेह नही . मैं चाहता हूँ यह विवाद खत्म हो . I do apologise if our friends and brothers r pained because of me.
इससे पहले मीडिया से बात करते हुए जनाब डीएम ने यह भी कहा कि यात्रा, आयोजन से पहले जरूरी है कि पुलिस से अनुमति ली जाए या कुछ बातों में प्रशासनिक अनुमति हो। हमें कानून-व्यवस्था की समस्या संभालनी होती है।… यदि कोई ऐसे काम प्रशासन से बिना वाजिब अनुमति के करता है तो दिक्कत आ खड़ी होती है। जब बिना बात के आक्रामक होंगे, जब पुलिस अनुमति नहीं लेंगे, डिफाई करंेगे तो कई समस्याएं होंगी… कभीकभार ये चीजंे ऐसा टर्न ले लेंगी कि मुजफ्फरनगर जैसी घटनाएं होगी। संयम जरूरी है।
दोनों पोस्ट और रिपोर्टरों से बात के डीएम के ये हिस्से प्रकाशित हो चुके हंै। इससे कुल मिला कर मौटे तौर पर आओ खेले भारत, पाकिस्तान खेल को ले कर झलकती वह प्रशासनिक चिंता है जो एक डीएम और एसपी को सामान्य तौर पर इसलिए रहती है क्योंकि इनकी एसीआर में सांप्रदायिक घटना, तनाव का रिकार्ड करियर में मुश्किल बनवाता है। राज भले भगवा हो मगर अफसर चिंता में रहेगा कि दंगे, हिंसा की घटनाओं से उसकी एसीआर न बिगड़े। तथ्य है कि जिस कासगंज में हिंसा हुई वहा का एसएसपी सुशील कुमार सिंह (शायद राजपूत) हिंसा के बाद अपने तबादले को नहीं बचा पाया। वह भी योगीजी के ठाकुर राज में चहेता आईपीएस अफसर होगा लेकिन मुख्यमंत्री ने भी हिंसा का ठिकरा फोड़ते हुए तत्काल तबादले का आदेश दिया।
सो अफसर की चिंता, उसकी मुश्किल के अपने अर्थ है और उसी में निकली यह भड़ास, यह हैरानी है कि क्यों भाई वे पकिस्तानी हैं क्या?
और अपना मानना है कि यह सवाल आज की राजनीति के खेल के मर्म को छूने वाला है! मगर डीएम या एसएसपी या किसी भी अफसर का ऐसा पूछना हिमाकत भरा इसलिए है क्योंकि नेता जब अखाड़ा सजा भारत-भारत, पाकिस्तान-पाकिस्तान की कबड्डी टीवी चैनलों पर प्रायोजित किए हुए है और शहर-शहर, गांव-गांव में तिरंगा यात्रा और वंदे मातरम के उद्घोष के साथ खम ठोंक ललकारने का संकल्प है तो प्रशासन को या तो तमाशबीन रहना होगा या यह प्रबंधन किए रहना होगा कि खेल में पाकिस्तानी ठुके न कि तिरंगा लिए हुए कोई नहीं मर जाए! इसलिए कि पाकिस्तान नहीं ठुकेगा तो चुनाव जीतने का फाइनल लक्ष्य गड़बड़ा जाएगा। मतलब पाकिस्तान का ठूकना और श्मशान के आगे कब्रिस्तान में स्यापा जरूरी है
जाहिर है अफसर को नौकरी की चिंता, क़रियर की चिंता एक तरफ तो सत्ता का संकल्प सतत वह हवा बनवाए रख रहा है कि पाकिस्तान की ठुकाई कर दे रहे हंै। 56 इंची छाती और योगी आदित्यनाथ के भगवा राज ने हम तिरंगाधारियों में यह हिम्मत बनवा दी है कि शहर-शहर को अखाड़ो में सजाओ और वहां भारत व पाकिस्तान के पाले बना कर खेलों भारत- भारत, पाकिस्तान –पाकिस्तान की कबड्डी!
मगर कासगंज की कबड्डी में वंदे मातरम का नारा लगाते हुए तिरंगावादी चंदन मारा गया। राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने घटना को कलंक और शर्मनाक बताया तो दूसरी और चंदन के लिए सेकुलरवादी, वामपंथी रोते नहीं मिले। तभी खेल के खिलाड़ियों का सोशल मीडिया में हुंकारा दिख रहा है कि ये अखलाक, पहलू खान, जुनैद और आसिफ के लिए तो रोते है पर चंदन के लिए नहीं। चंदन के लिए न मोमबत्ती मार्च और न पुरस्कार लौटाने का हल्ला! ये पाकिस्तानियों के समर्थक! इन्हे छोड़ना नहीं। संकल्प करों कि अगली 15 अगस्त को तिरंगा यात्रा भारत के हर शहर में वहां ले जानी है जहां पाकिस्तानी छुपे पड़े हंै और इन्हे ऐसा बेबस बना डालना है कि 2019 में आम चुनाव में न तो इनके लिए कोई रोने वाला होगा और न ये रो सकें। गांव-गांव, शहर-शहर भारत-भारत, पाकिस्तान-पाकिस्तान की कबड्डी-कबड्डी भरपूर होगी।
और कल्पना करें यदि यह खेल दस या पंद्रह साल चला तो भारत में क्या बनेगा?
-हरि शंकर व्यास द्वारा सम्पादित नया इंडिया से साभार