नई दिल्ली। सुकमा में सीआरपीएफ के जवानों की शहादत का बदला ले लिया गया है, छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में रविवार से मंगलवार तक चले नक्सल रोधी अभियान में 20 नक्सलियों के मारे जाने का दावा सुरक्षा अधिकारियों ने किया है, कोबरा बटालियन, एसटीएफ और डीआरजी के संयुक्त अभियान में इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया। सीआरपीएफ का कहना है कि बीजापुर जिले के बासागुड़ा थाना क्षेत्र के रायगुंडम के जंगलों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच कई बार मुठभेड़ हुई। इस संबंध में एक वीडियो भी सामने आया है। इसे उस अभियान के दौरान फिल्माया गया, जो सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन ने नक्सलियों के खिलाफ छेड़ा है।
सुकमा में नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई पर यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि अगर ये एनकाउंटर सही लोगों का किया गया है तो वो स्वागतयोग्य है। उम्मीद है कि इतनी बड़ी कार्रवाई प्रतिशोध की भावना से नहीं हुई होगी, बल्कि पुख्ता जानकारी और सही गुनहगारों के खिलाफ हुई होगी। विक्रम सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब परिपक्व नेतृत्व में समाज और देश के गुनहगारों के खिलाफ निर्णायक अभियान चलाया जाए। सीआरपीएफ के आईजी ने कहा कि मौके पर गिरे खून और लाशों को घसीटे जाने के साक्ष्यों के आधार पर नक्सलियों के इतनी संख्या में मारे जाने का दावा किया जा रहा है।
बीजापुर के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि सीआरपीएफ, डीआरजी, जिला पुलिस बल और कोबला बटालियन के जवान एक साथ अभियान के लिए निकले थे। तीन दिनों से इलाके में अभियान चलाया जा रहा था। सुरक्षा बलों को खुफिया जानकारी मिली थी कि रायगुंडम के जंगलों में 100-150 की संख्या में नक्सली सक्रिय हैं। मुठभेड़ के दौरान नक्सली अपने साथियों के शव साथ ले गए। ऐसा पहली बार नहीं है, इससे पहले भी जितनी भी बार मुठभेड़ हुई। नक्सली अपने साथियों के शव को लेकर जंगलों में भाग जाते थे।
वर्ष 2009 में कोबरा कमांडो का गठन किया गया था। भारत की आठ स्पेशलाइज फोर्सेज में से एक कोबरा कमांडो को नक्सली इलाकों में इनका सफाया करने के लिए ही गठित किया गया था। इस कोबरा कमांडो में सीआरपीएफ के बेहतरीन जवानों को शामिल किया जाता है। कोबरा (CoBRA) का अर्थ है कमांडो बटालियन फॉर रिसॉल्यूट एक्शन (Commando Battalion for Resolute Action)। इस कमांडो फोर्स के गठन के पीछे मकसद नक्सलियों के हमले में मारे गए जवान ही बने थे। लिहाजा गृह मंत्रालय ने इनके गठन को मंजूरी देते हुए दस ऐसी बटालियन बनाने को कहा था। इस आदेश के बाद वर्ष 2008-09 में इसकी दो, वर्ष 2009-10 में चार और 2010-11 में फिर चार बटालियन तैयार की गईं। नक्सली इलाकों में होने वाले गौरिल्ला युद्ध को देखते हुए इन कमांडो को जबरदस्त ट्रेनिंग से गुजरना होता है। ट्रेनिंग के दौरान न सिर्फ इनकी शारीरिक कुशलता को आंका जाता है बल्कि मानसिक तौर पर भी इन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है। ट्रेनिंग में इन्हें गौरिल्ला युद्ध, फील्ड इजींनियरिंग, जमीन के नीचे मौजूद बमों को पहचानने और उन्हें निष्कर्य करने, जंगल में भूखे प्यासे होने की सूरत में वहां की चीजों से पेट भरने और अपने को हर हाल में युद्ध के लिए तैयार रखने की ट्रेनिंग दी जाती है।
जंगल वारफेयर के नाम से दी जाने वाली इस ट्रेनिंग को पार करना इनके लिए बड़ी चुनौती होती है। इसके अलावा इस बटालियन से जुड़े हर कमांडो को समय आने पर टीम को लीड करने के साथ जीपीएस डिवाइस का इस्तेमाल करते हुए और सभी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ने, सामने आने वाली इंटेलिजेंस रिपोर्ट के आधार पर अपनी तैयारी करने, जंगल में रहते हुए नक्शे की मदद से नक्सली इलाकों का पता लगाने जैसी अहम ट्रेनिंग भी दी जाती है। कड़ी ट्रेनिंग से गुजरने से गुजरने के बाद भी नक्सली इलाकों में होने वाले ऑपरेशन से पहले इसकी तैयारी के तहत एक डमी ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है। इनके लिए खासतौर पर कोबरा स्कूल ऑफ जंगल वारफेयर एंड टेक्टिस भी बनाया गया है। कोबरा कमांडो के लिए नक्सली इलाके कहीं से भी नए नहीं हैं। जब-जब कोबरा कमांडो की इन इलाकों में तैनाती की गई है तब-तब नक्सलियों की शामत आई है। जंगल में एंट्री के साथ ही कोबरा कमांडो का ऑपरेशन शुरू हो जाता है। इसके बाद रोटी नहीं भी मिलती है तो इनके लिए यहां पाए जाने वाले सांप ही इनका भोजन होता है। इसके अलावा कुछ खास पेड़ों के पत्ते और इनसे मिलने वाले फलों पर गुजारा कर यह अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। कोबरा कमांडो के हाथों 61 नक्सली अब तक ढेर किए जा चुके हैं, जबकि 866 को पकड़ा गया है। इनके रहते कई बार नक्सली इलाकों से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारुद बरामद किया गया है। अपने सफल ऑपरेशन की बदौलत यह बटालियन अब तक 9 गैलेंट्री अवार्ड और दो शौर्य चक्र तक पा चुकी है।