ओमीक्रोन न्यूज़: हफ्तेभर में ठीक हो रहे हैं ओमीक्रोन के मरीज फिर डॉक्टर कर रहे सतर्क, जानें क्यों?
नई दिल्ली। सच है कि दिल्ली में ओमीक्रोन जंगल की आग की तरह फैल रहा है। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं, लेकिन खुशी की बात है कि कोरोना वायरस के इस नए वेरियेंट से संक्रमित होने वाले ज्यादातर मरीज सप्ताहभर में ठीक हो जा रहे हैं। यह 105 ओमीक्रोन मरीजों की केस हिस्ट्री के विश्लेषण में साबित हुआ है। इन 105 मरीजों में सात बच्चे भी थे। इन सबका लोकनायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में इलाज हुआ था।
राष्ट्रीय राजधानी के इस बड़े अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि ओमीक्रोन से संक्रमित करीब 99% मरीज हफ्ताभर में चंगे हो गए। उन्होंने कहा, ‘यह वेरियेंट बहुत तेज रफ्तार से फैलता है, लेकिन डेल्टा वेरियेंट के मुकाबले यह शरीर को बहुत तेजी से छोड़ भी देता है।’ डेल्टा वेरियेंट से हुई कोविड-19 महामारी को ठीक होने में 7 से 10 दिन लगते थे। कुछ मरीजों को तो बीमारी से उबरने में और ज्यादा वक्त लग जाता था। कुछ डेल्टा मरीज तो दो महीने से भी ज्यादा वक्त में निगेटिव होते थे। आंकड़े बताते हैं कि ओमीक्रोन वेरियेंट के मामले में सप्ताहभर के अंदर 92% मरीजों के आरटी-पीसीएर टेस्ट निगेटिव आ रहे हैं। वहीं, 5% मरीज आठवें दिन जबकि 3% मरीज नवें दिन निगेटिव पाए जा रहे हैं।
सिर्फ 1 मरीज जिसे टीबी की बीमारी भी थी, वो लंबे समय तक पॉजिटिव पाया गया। डॉ. सुरेश कुमार बोले, ‘देखा गया है कि डायबिटीज, हाइपरटेंशन या टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीज ओमीक्रोन संक्रमण से उबरने में थोड़ा ज्यादा वक्त ले रहे हैं।’ ज्यादातर ओमीक्रोन मरीज में बीमारी का कोई लक्षण भी नहीं पाया जा रहा है और कुछ में लक्षण दिखते भी हैं तो वो हल्का बुखार, कमजोरी, मतली और भूख की कमी जैसे बिल्कुल सामान्य होते हैं। इस नए वेरियेंट से संक्रमित बच्चों के पेट में दर्द और डायरिया की भी शिकायत देखी जा रही है। हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि सांस लेने में परेशानी करीब-करीब गायब ही है जो कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा देखी गई थी।
एक सीनियर डॉक्टर ने कहा, ‘लोकनायक अस्पताल से डिस्चार्ज हुए 105 में से किसी भी ओमीक्रोन मरीज को ऑक्सिजन सपोर्ट देने की जरूरत नहीं पड़ी थी।’ अब भी वायरस से संक्रमित जिन मरीजों को ऑक्सिजन और वेंटिलर सपोर्ट की जरूरत पड़ रही है, उनमें डेल्टा का संक्रमण पाया गया है। ओमीक्रोन इतना तेजी से क्यों फैलता है और उसके लक्षण बेहद सामान्य क्यों होत हैं? इस सवाल पर इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. एनके मेहरा ने हॉन्ग कॉन्ग में की गई एक स्टडी का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि हॉन्ग कॉन्ग में वैज्ञानिकों ने इंसानी फेफड़े के उत्तक को सार्स-कोव2 वायरस के अलग-अलग वेरियेंट से संक्रमित किया था। तब पाया गया कि ओमीक्रोन ने श्वसनी में मूल सार्स-कोव2 या उसके डेल्टा वेरियेंट के मुकाबले 70 गुना तेजी से अपने प्रतीरूप पैदा किए।
मेहरा ने कहा कि इस प्रयोग में यह भी पाया गया कि ओमीक्रोन फैला तो तेजी से लेकिन फेफड़े को कमजोर करने की कम क्षमता के साथ। डॉ. मेहरा ने कहा, ‘नया ओमीक्रोन वेरियेंट गले में लंबे समय तक ठहरता है जिस कारण यह तेजी से फैलता है, लेकिन फेफड़े में यह अपनी कॉपी उतनी तेजी से नहीं बना पाता है। इस कारण मरीज में गंभीर बीमारी नहीं होती है।’ हालांकि, उन्होंने सचेत किया कि ओमीक्रोन के तेजी से फैलने के कारण झुंड के झुंड में लोग संक्रमित होंगे। उनमें भले ही कमजोर लक्षण हों, लेकिन बीमारी तो होगी। इस कारण अस्पतालों में भीड़ बढ़ेगी।