पदोन्नति में भी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाएगी सरकार: रामविलास पासवान
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने की स्थिति में केंद्र सरकार एसटी-एसटी एक्ट के प्रावधानों में बदलाव के खिलाफ और प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए अध्यादेश का सहारा लेगी। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि दोनों मुद्दों पर सरकार का रुख स्पष्ट है। इसे लेकर संबंधित मंत्रिमंडलीय समूह (जीओएम) में भी कोई मतभेद नहीं है। गौरतलब है कि सपा के विरोध के कारण इससे संबंधित बिल बीती सरकार में ठंडे बस्ते में चला गया था। पासवान ने कहा कि सरकार पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की कुछ शर्तों के कारण यह व्यवस्था बीते कुछ वर्षों से बंद है। सरकार शीर्ष अदालत के सामने एक बार फिर अपना पक्ष मजबूती से रखेगी। इसके बावजूद राहत नहीं मिली तो सरकार अध्यादेश का रास्ता अपनाएगी। पासवान ने दावा किया कि यह व्यवस्था बंद होने से दलितों में बेहद नाराजगी है। सरकार इस वर्ग में असंतोष नहीं फैलने देना चाहती। बीते हफ्ते जीओएम की बैठक में एससी-एसटी एक्ट सहित दलितों की अन्य समस्याओं पर गंभीर बातचीत हुई थी। इस बैठक के बाद ही सरकार ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इस फैसले के कारण देश को बहुत नुकसान झेलना पड़ा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले जीओएम में नरेंद्र सिंह तोमर, रविशंकर प्रसाद, थावर चंद गहलोत और पासवान शामिल हैं।
राजग सरकार के तीन घटक दल एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ और आरक्षण के समर्थन में हल्ला बोल की तैयारी कर रहे हैं। लोजपा और रालोसपा जहां उच्च न्यायपालिका में आरक्षण लागू कर दलित, पिछड़े और निर्धन वर्ग को न्यायाधीश बनाने की वकालत कर रहे हैं, वहीं जदयू निजी क्षेत्र में आरक्षण को लेकर आंदोलन शुरू करने के लिए कमर कस रहा है। अपने तीन घटक दलों की आक्रामक रणनीति से घबराई मोदी सरकार दलितों को साधने के उपायों पर मंथन करने में जुट गई है। सरकार आरक्षण पर अध्यादेश का सहारा लेने के अलावा अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रही है।
लोकजन शक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान ने कहा है कि उच्च न्यायपालिका में आरक्षण होना चाहिए। आरक्षण से न्यायिक क्षेत्र में पिछड़े वर्ग को भी उचित स्थान मिलेगा।
उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से वह गरीब सवर्णों को भी आरक्षण देने के पक्षधर हैं। अदालत के फैसलों की वजह से पिछड़ी जातियों को परेशानी झेलनी पड़ी है। चिंता की बात यह है कि इस वक्त भी सुप्रीम कोर्ट में कोई दलित जज नहीं है और हाईकोर्ट में भी उनकी संख्या बहुत कम है। पासवान ने कहा कि संविधान की धारा 312 में प्रावधान है कि अगर सरकार चाहे तो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन करके उसके जरिये जजों की नियुक्ति कर सकती है। अगर ऐसा होगा तो पारदर्शी तरीके से दलित वर्गों के लोग भी न्यायपालिका में पहुंच सकेंगे।