नफ़रत की ज़िद में प्यार से आगे निकल गए, पढ़िए आयशा अयूब की दिल को छू जाने वाली ये गजलें-
लखनऊ | कोरोना लॉकडाउन के बीच साहित्यकारों और शायरों को सोशल मीडिया पर जमकर सराहा गया है | लखनऊ की प्रख्यात शायरा और समाजसेविका आयशा अयूब की गजलें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं | मुखातिब फाउंडेशन चलाने वाली आयशा की गजलों को लोग खूब असंद कर रहे हैं | आप भी पढ़िए उनकी ये गजलें-
पाबंदी ए हिसार से आगे निकल गए
नफ़रत की ज़िद में प्यार से आगे निकल गए
इस दर्जा इख़्तियार उसे ख़ुद पे दे दिया
हम उसके इख़्तियार से आगे निकल गए
अपने क़दम को अपनी ही जानिब बढ़ा लिया
दुनिया की हर क़तार से आगे निकल गए
आवाज़ दी गई हमें ताखीर से बहुत
इतनी के हम पुकार से आगे निकल गए
मुड़ कर भी देखने की इजाज़त नहीं मिली
हम भी रह ए ग़ुबार से आगे निकल गए
जो लोग कार ए इश्क़ में मसरूफ हो गए
वो फ़िक्र ए रोज़गार से आगे निकल गए
जीना मोहाल शेह्र में इतना हुआ के हम
मरने के इंतेज़ार से आगे निकल गए
गजल-2
कल शाम वापसी में अजब मरहला पड़ा
घर का कबूतरों से पता पूछना पड़ा
कुछ उम्र अपनी ज़ात का दुख झेलते रहे
कुछ उम्र कायनात का दुख झेलना पड़ा
पानी की एक बूंद को बारिश समझ लिया
सूखी थी जो ज़मीन वहां भीगना पड़ा
सूरत या नाम से तो न था अजनबी मगर
वो शख़्स कौन था ये हमें सोचना पड़ा
जब दुश्मनों ने हाथ खड़े कर लिए तो फिर
लाचार दोस्तों की तरफ देखना पड़ा
चुप हो गए हमारे नुमाइंदे जब तमाम
हाकिम के सामने हमें खुद बोलना पड़ा
उसने वही सवाल किया हम से बार बार
हम को मगर जवाब नया ढूंडना पड़ा
ग़ज़ल- 3
बात कोई तो हो छुपाने को
जो बताएं न हम ज़माने को
मुझ से करते हो उसकी बातें तुम
क्या मेरा सब्र आज़माने को?
मैंने हर मोड़ पे ये कोशिश की
एक नया मोड़ दूँ फ़साने को
वस्ल आया था नींद में चल के
हिज्र के फायदे बताने को
एक मैसेज तो कर ही सकता था
वो मुझे ख़ैरियत बताने को
देर कर दी है तुम ने आने में
कुछ बचा ही नहीं बचाने को