पढ़िए डॉ संजय अवस्थी का यह आर्टिकल- ‘कोविड-2019 और विज्ञान आज तक’
दिसम्बर 2019 का अंत हो रहा था, विश्व क्रिसमस का पर्व मना रहा था, तब दबे पांव खबरें चीन के वुहान से आने लगीं कि सार्स कोरोना वायरस के नए रूप ने मानव जाति पर हमला किया है। तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह अत्यंत सूक्ष्म दैत्य, सम्पूर्ण विश्व को इतने शीघ्र, अपने जबड़ों में जकड़ लेगा। इस आलेख में हम आजतक, विज्ञान के इस महामारी के ज्ञान एवं इसके बचाव एवं इलाज हेतु सक्षमता पर चर्चा करेंगे।
आजतक कोई भी वैज्ञानिक अध्ययन या शोध, इस वायरस के विरुद्ध लड़ाई हेतु कोई प्रभावी साधन या इसकी सम्पूर्ण समझ हेतु कोई ठोस ज्ञान नहीं देता। केवल आंकड़ों की बाजीगरी हो रही है, सांख्यिकी के आधार पर अनुमान लगाए जा रहें हैं। किसी डाटा का विश्लेषण, उन स्थितियों में सही परिणाम दे सकता है जब व्यवसायिक संभावनाओं पर विचार हो या कोई जनसांख्यिकी अध्ययन हो, जहां प्रभावित करने वाले कारक एक या दो हों। इटली या चीन से संक्रमण की प्राप्त डाटा, भारत पर कैसे सही अनुमान दे सकती है, जहां जनसांख्यिकी बिल्कुल अलग है, प्रशासन का स्तर और प्रभाविकता, रहन सहन, जीवन स्तर, बसाहट, संस्कार आदि सब अलग हैं। भारत में किसी एक शहर में भी इन में से कई कारक बहुत भिन्न है, मुंबई का सघन झुग्गी झोपड़ी वाला धरावी, चर्चगेट, कोलाबा, मालाबार हिल्स आदि से बहुत भिन्न है। अतः संक्रमण के प्राप्त एक ही शहर के आंकड़ों से उसी शहर के बारे में भविष्य की स्थिति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
कोरोना तू कहां से आया?
विज्ञान आज तक कोरोना वायरस के इस नवरूप को समझ ही रहा है, ये कहाँ से आया ? कैसे आया ? कोई सटीक जानकारी अभी नहीं है। वुहान में जब संक्रमण के संकेत मिले तो प्रारम्भ में चीन ने खबरें दबाईं, पर बाद में वुहान की विषाणु प्रयोगशाला ने इस वायरस का सम्पूर्ण जीनोम अनुक्रमण ज्ञात कर लिया और डब्लूएचओ को इसकी जानकारी दी। इस आरएनए वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग हो जाने के बाद भी चीन इस सन्देह का निवारण नहीं कर पाया कि ये आया कहाँ से? क्या ये वुहान की वायरोलॉजी लैब से लीक हुआ, जैव हथियार तो नहीं? क्या चीन सच बोल रहा है कि ये वुहान के मांस बाजार से आया? वहां, कैसे पहुंचा? पहला संक्रमित व्यक्ति कौन था? प्रश्न कई हैं, उत्तर भी चीन जैसे कठोर शासन वाले मुल्क के लिये कठिन नहीं। जिस तरह, चीन अपने कठोर शासन से, इस वायरस से लगभग मुक्त हो, विश्व की छिन्न भिन्न अर्थव्यवस्था में मौके भुनाने के प्रयास कर, विश्व में राज करने सपने देख रहा है, उससे सन्देह जन्म ले रहें हैं।
विज्ञानी पहले इसे टाइनोलफ़्स (घोड़े की नाल के समान) चमगादड़ से आया मान रहे थे क्योंकि इस जीव में पाया जाने वाला बीटा कोरोना वायरस, इससे मिलता जुलता है। बाद में देखा गया कि ये नवीन शत्रु, चींटी भक्षक पेंगोलिन में मिलने वाले कोरोना से भी 99% समान है। पर चमगादड़ वाला वायरस, मनुष्य को संक्रमित करने सक्षम नहीं, जबकि पेंगोलिन वाला है। इन दोनों विषाणुओं के जीनोमों की तुलना से प्राप्त परिणाम ये कहते हैं कि कोरोना-19, इन दोनों का मिला हुआ स्वरूप है, पर अभी भी प्रश्न अनुत्तरित हैं जैसे – इन जीवों में मिलने वाले विषाणुओं का मिलन, किस जीव में हुआ? पेंगोलिन में? चमगादड़ में? अन्य में? मानव में? कैसे? या मिलन लैब में तो नहीं हुआ?
बैक्टीरिया के लिये एंटीबायोटिक पर, वायरस के लिए एंटीवायरस कठिन क्यों?
जीवाणु(बैक्टीरिया) एक पूर्ण एकल कोशिका जीव है, जिसे जीने के लिये किसी और जीव(होस्ट) की आवश्यकता नहीं, वे मनुष्य कोशिका के समान हैं और स्वंय अपनी संख्या, कोशिका विभाजन से बढ़ाते हैं। मनुष्य कोशिका से भिन्न इनमें कोशिका भित्ति होती है। बैक्टेरिया के संक्रमण पर एंटीबायोटिक दवाई देने पर, वह उस जीवाणु को कोशिका भित्ति(पैप्टीडोग्लायकेन पॉलीमर से निर्मित) बनाने से रोकती है, अतः बैक्टेरिया नई कोशिकाएं नहीं बना पायेगा। वायरस, पूर्ण जीव तो नहीं ही है, किसी के पास आरएनए तो कोई डीएनए वाला वायरस। ये होस्ट की अनुवांशिकी मशीनरी पर कब्जा कर, अपनी संख्या बढ़ाते हैं। किसी भी प्रभावी एंटीवायरल को, वायरस के जीवन चक्र पर हमला करना होगा, क्योंकि वो मनुष्य के अनुवांशिकी तंत्र का प्रयोग कर रहा है, इसलिए वह औषधी होस्ट पर भी बुरा प्रभाव डालेगी।
कोरोना का आजतक कोई इलाज ?
दर्शन के गर्भ से निकला विज्ञान, मानव कल्याण के लिए ज्ञान के नए क्षितिज तलाशता है, परन्तु भोग की संस्कृति बढ़ने से विज्ञान व्यवसाय बन गया है। ज्ञान का सृजन तिजोरी भरने होता है। डॉ पॉल एहर्लीच के 606 प्रयास सिफालिस की दवा सालवर्सन खोजने, केवल मानवता के कल्याण के लिये थे, धन के लिये नहीं। आज तो होड़ लगी है कि कैसे इस बीमारी की दवा खोज प्रथम आएं और विश्व के राजा बनें। आज तक सम्पूर्ण विश्व में कोविड का इलाज लक्षणों के आधार पर हो रहा है। भारत ने विश्व में सर्वप्रथम बैक्टेरियल संक्रमण में प्रयुक्त एंटीबायोटिक एजिथ्रोमायसिन को मलेरिया की रामबाण औषधि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ दे, गम्भीर मरिजों में, प्रभावी परिणाम पाए, विश्व के अनेक देशों को भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन भेज कर, संकट में सहायता प्रदान की। लांसेट जर्नल अब ये कहता है कि एचसीक्यू का दावा कमजोर है। वैसे वो खुद भी अपने परिणाम पर आश्वस्त नहीं, एक प्रकार से यह भारत की प्रसिद्धि को कम करने की साजिश भी हो सकती है।
इबोला पर कारगर एंटीवायरल दवा रेमेडेसिवीर को कोरोना पर भी अत्यंत प्रभावी होने की खबर उड़ी तो उसकी निर्माता अमेरिकी कंपनी गिलियड सांइसेज के शेयर आसमान चढ़ने लगे। इसके अलावा 5-फ्लोरऔरासिल(कैंसर के उपचार हेतु), एंटीवायरल रिबीविरिन(बहुत से आरएनए व डीएनए वायरस के विरुद्ध,हेपेटाइटिस सी हेतु विशेष) और एंटीवायरल फैविपिरावीर(इन्फ्लुएंजा हेतु) को तो ग्लेनमार्क ने आधे अधूरे परीक्षण के बाद बाजार में उतार दिया है। धन के लोलुप व्यवसायी कहाँ अवसर खोते हैं ? रामदेव जी ने भी एक इम्युनिटी बूस्टर बनाया और बिना परीक
-लेखक डॉ संजय अवस्थी, उन्मेष के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और जबलपुर से हैं |