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संघ न तानाशाह, न रिमोट से चलाता है : मोहन भागवत RSS प्रमुख

  • September 17, 2018
  • 1 min read
संघ न तानाशाह, न रिमोट से चलाता है : मोहन भागवत RSS प्रमुख

दिल्ली| प्रबुद्ध वर्ग के चुनिंदा लोगों के साथ तीन दिन के संवाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ के बारे में लोगों के साथ सीधा संवाद किया। उन्होंने कहा कि संघ न तो तानाशाह है और न ही किसी को रिमोट से चलाता है।
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ भागवत ने संघ की तानाशाह (डिक्टेटर) व रिमोट कंट्रोल वाली छवि बनाने वालों को स्पष्ट जबाब दिया। उन्होंने कहा कि संघ के कदम-कदम पर सामूहिकता है और उसके स्वयंसेवक अपना कार्यक्षेत्र खुद चुनते हैं, संघ का उसमें कोई दखल नहीं है। समन्वय बैठक में संघ अपने एक लाख 70 हजार से ज्यादा प्रकल्पों से जुड़े लोगों की चिंता करता है।
भागवत ने साफ किया कि सत्ता में कौन बैठेगा, समाज के लोग तय करें। संघ का जोर आचरण पर है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सूर्योदय होना चाहिए। वह हमारे मुर्गे की बांग से ही हो, ऐसा नहीं है। सरसंघचालक ने कहा कि संघ की पद्धति है पूर्ण समाज को जोड़ना और इसलिए संघ का कोई पराया नहीं। जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं। संघ केवल यह चिंता करता है कि उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो। संघ सर्व लोकयुक्त वाला है, मुक्त वाला नहीं। सबको जोड़ने का हमारा प्रयास रहता है, इसलिए सबको बुलाने का प्रयास करते हैं।
हेडगेवार को जाने बिना संघ को समझना मुश्किल–
संवाद के पहले दिन संघ प्रमुख ने साफ किया कि संघ को समझने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। सारी दुनिया में चर्चा है कि संघ शक्ति के रूप में देश में उपस्थित है, तो उसके बारे में पता भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को जाने बिना संघ को समझना मुश्किल है। पहले दिन के संवाद में भागवत ने हेडगेवार के जीवन, दर्शन व कार्यों का जिक्र किया और बताया कि किन परिस्थतियों में किस स्वरूप व किस लिए संघ की स्थापना की गई थी। आजीवन देशसेवा का व्रत लेने वाले हेडगेवार क्रांतिकारियों के साथ भी रहे, कांग्रेस में रहे और संघ के जरिए राष्ट्र सेवा का कार्य भी शुरू किया। उन्होंने कहा कि संघ का अनोखा काम है, जिसकी तुलना किसी और संगठन से नहीं हो सकती है।
संघ व्यक्ति निर्माण करता है–
भागवत ने संघ के बारे में स्पष्ट किया कि संघ केवल एक सतत चलने वाली प्रक्रिया भर है। 1925 में मुट्ठी भर लोगों से यह शुरू हुआ था। संघ स्वावलंबी है। वह किसी से कोई सहायता नहीं लेता है। उसके स्वयंसेवक ध्वज को जो गुरुदक्षिणा देते हैं, उसी से काम चलता है। उन्होंने कहा कि भारत में हिंदू समाज को भाषाई विविधता व रीत-रिवाजों के कारण संगठित करना कठिन काम था। संघ ने विविधताओं का सम्मान कर मिलजुल कर काम करने को अपनाया। चूंकि देश का पतन हमारे पतन से हुआ, इसलिए संघ मूल्य आधारित संस्कृति को आगे बढ़ाता है। संघ व्यक्ति निर्माण करता है। व्यक्ति और व्यवस्था दोनों में बदलाव जरूरी है। एक के बदलाव से परिवर्तन नहीं होगा।
आज की स्थिति क्या हैं, देख ही रहे हैं–
हालांकि आज की स्थितियां क्या है? आज अनेक दल हैं, उनके बारे में लोग खुद ही देख रहे हैं। सरसंघचालक ने कहा कि देश का जीवन जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, राजनीति होगी और आज भी चल रही है। सारे देश की एक राजनीतिक धारा नहीं है। अनेक दल है, पार्टियां हैं। इसके विस्तार में जाए बिना उन्होंने कहा कि अब उसकी स्थिति क्या है, वे कुछ नहीं कहेंगे।