..तो क्या असदउद्दीन ओवैसी AIMIM को बंद कर सियासत छोड़ दें !
गत दिनों आये बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद देश मे भाजपा विरोधी दलों की सियासत को बड़ा झटका लगा है | पश्चिम बंगाल और यूपी के आम चुनाव से पहले बिहार में भाजपा की हार की आस लगाए बैठे राजनैतिक दल बिहार में फिर एनडीए की जीत को पचा नहीं पा रहे हैं | हालाँकि, एनडीए कुछ सीटों पर बहुत कम वोट से जीता है, जिसको पावर और पैसे के दम पर जीतना राजद, कांग्रेस सहित अन्य दल बता रहे हैं | जो भी कारण रहे हो लेकिन अब यह बात सत्य है कि बिहार में एनडीए एकबार फिर सरकार बनाने जा रहा है | दिवाली से पहले आये इन नतीजों ने भाजपा में देशभर में उत्साह भरने का काम किया है तो वहीँ विपक्षी दलों की चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं |
बिहार चुनाव के परिणाम के बाद मुस्लिम सियासत एकबार फिर परवान चढ़ी है | असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार चुनाव में करिश्माई प्रदर्शन करते हुए पांच सीट जीती हैं जिसकी चर्चा देशभर में हो रही है | वहीँ ओवैसी की पार्टी दर्जनभर सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है | ओवैसी के मुस्लिमो में बढ़ते कद से बंगाल और यूपी में हंगामा मचा हुआ है | कांग्रेस, सपा और राजद सहित कई दलों के नेता ओवैसी को वोट कटवा बता रहे हैं | बिहार हार में खुद की कमियां तलाशने की बजाय कथित सेक्युलर दल ओवैसी पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं जो वास्तविकता से परे है |
दरअसल, ओवैसी की मजबूती ने बंगाल और यूपी में मुस्लिम सियासत को जगाने का काम किया है | अभी तक मुस्लिम मुद्दों पर खुलकर बात करने से कतरा रहे दल भी अब ओवैसी पर बोल रहे हैं | भाजपा को बढ़ाने, भाजपा की मदद करने का आरोप ओवैसी पर है लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि ओवैसी एक राजनैतिक दल चला रहे हैं जिसमे सब जायज है | एक सियासी दल को कहीं भी, किसी भी सीट पर चुनाव लड़ने की आजादी होती है तो ओवैसी से दिक्कत क्यों ? अगर ओवैसी को लोग पसंद कर रहे हैं, उनको चुनाव जितवा रहे हैं तो सेकुलरिज्म का झंडा उठाये घूम रहे दलों को दिक्कत क्या है ? यदि ओवैसी से इतने ही राजनैतिक नुकसान का अंदेशा था तो उन्हें महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया ? तो क्या BJP को हराने और कथित सेकुलर दलों की सत्ता लाने के लिए असदुद्दीन ओवैसी अपनी राजनैतिक पार्टी AIMIM बंद कर सियासत छोड़ दें ? यह सब सवाल अब मुस्लिमों सहित देशभर में गूँज रहे हैं । हालांकि हकीकत यह है कि मुस्लिम अब ओवैसी को हर तरह से समर्थन दे रहे हैं, उनपर सियासी दलों के आरोपो का कोई असर नही है ।
मेरा मानना है कि राजनैतिक दलों को दिक्कत असदुद्दीन ओवैसी से नहीं बल्कि उस वोट बैंक से है जिसके जरिये वह दशकों से सत्ता का स्वाद लेते आये हैं | वास्विकता में गौर करें तो बिहार चुनाव में ओवैसी ने कोई ख़ास फर्क महागठबंधन पर नहीं डाला है फिर भी मुस्लिमो को भाजपा का भय दिखते हुए बिहार में जीत के लिए ओवैसी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है | मुस्लिमो को तरह तरह के बयानों से उलझाया जा रहा है | यहाँ यह विशेष है कि कोई भी दल यह कतई बताने को तैयार नहीं कि गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान में जाकर चुनाव लड़ने वाली सपा और बसपा किसको फायदा पहुंचाती आई हैं ? गत बिहार चुनाव में चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन से बाहर होने वाली समाजवादी पार्टी ने किसको फायदा पहुँचाया था ?
बिहार चुनाव ने देश को राजनीति में नई दिशा दी है | मुस्लिमो ने यदि भाजपा के आने का खौफ दिखाने वाली राजनैतिक पार्टीयों के एजेंडे को समझ लिया तो देश में सियासत की दशा और दिशा ही बदल जाएगी | मुस्लिमो ने यदि दशकों से वोट लेकर खुद की बिरादरी और समाज को मजबूत करने वाली सियासी पार्टियों से सवाल करना शुरू कर दिया कि दशकों तक सत्ता में उन्होंने मुस्लिमो के लिए क्या किया ? प्रशासनिक हिस्सेदारी में क्या दिया ? शिक्षा में क्या दिया ? स्वस्थ्य में क्या दिया ? योजनाओं में क्या दिया ? सरकार में हिस्सेदारी के नाम पर क्या दिया ? तो इन कथित सेकुलर दलों की धज्जियाँ उड़ जाएँगी |
वैसे भी असदुद्दीन ओवैसी के सवालो और लोगों से रूबरू होने के तरीके से यह दल घबराये हुए हैं | वह जानते हैं कि मुस्लिमों ने अगर दशकों तक सत्ता में रखने का हिसाब मांग लिया तो मुसीबत हो जाएगी और वह बेनकाब हो जायेंगे | अब यह मुस्लिमो को ही तय करना होगा कि वह जागरूक होकर भाजपा के भय को दरकिनार कर दशकों तक वोट बैंक समझने वालों से हिसाब मांगते हैं या फिर उन्ही के झंडे को उठाने में अपना भला समझते हैं | किसी शायर का यह शेर और बात खत्म-
ख़ुदा ने आज तक उस क़ौम की हालत नहीं बदली,
न हो जिस को ख़याल आप अपनी हालत के बदलने का !!
-लेखक जियाउर्रहमान, व्यवस्था दर्पण के सम्पादक हैं |
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