श्राद्ध : गृहस्थ जीवन में पितृपक्ष का है विशेष महत्व
कई तिथियों को श्राद्ध के लिए उपयुक्त कहा गया है, लेकिन पितृपक्ष का विशेष महत्व क्यों माना जाता है ? जानें आगे इसका व्यापक जवाब-
धर्मशास्त्रों के साथ-साथ वेदांग ज्योतिष में भी इसकी चर्चा है कि जब सूर्य कन्या राशि में हों, तो पितृयज्ञ यानी श्राद्ध का महत्व बहुत बढ़ जाता है। आदि, मध्य और अंत में यदि सूर्य कन्या राशि में हों, तो इस यज्ञ का फल हजार गुणा बढ़ जाता है। प्रत्येक वर्ष इस पक्ष के प्रारम्भ से अंत तक सूर्य कन्या राशि में निश्चित ही रहते हैं, इसलिए इस पितृयज्ञ को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। यदि कन्या राशि में सूर्य हो और कोई मनुष्य पितृ यज्ञ से वंचित रहता है, तो उसे अनेक प्रकार के दुख भोगने पड़ते हैं।
ज्योतिष में पंचम स्थान से पूर्व अर्जित कर्मों एवं पितरों की बात समझी जाती है और इसी स्थान के स्वामी की अशुभ स्थिति व राहु-केतु का प्रभाव होने पर पितृदोष बताया जाता है। इसलिए जो पितृपक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध करता है, उसे इस दोष का फल नहीं भोगना पड़ता।
गृहस्थ जीवन ग्रहण करने वाले लोगों को कर्मखण्ड, जिसे कर्मकाण्ड भी कहा जाता है, का विशेष पालन करना चाहिए। इसी खंड के अंतर्गत पितृयज्ञ की बात कही गई है। कर्मकाण्ड में पांच प्रकार के यज्ञों की चर्चा है- ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, भूत यज्ञ, मनुष्य यज्ञ तथा पितृ यज्ञ। पितृ यज्ञ को ही पितृ श्राद्ध कहा गया है। वैसे तो इसे नित्य करने का विधान बताया गया है, लेकिन यदि हम नित्य नहीं कर सकते तो विशेष दिनों में करना अनिवार्य होता है। और श्राद्ध पक्ष को इसके लिए विशेष माना गया है।
विशेष 96 तिथियां, जिसमें पितृ श्राद्ध करना चाहिए, उसके विषय में धर्म सिन्धु में विस्तार से बताया गया है। एक वर्ष में 12 अमावस, 4 पुण्य तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 सूर्य संक्रान्ति, 12 वैधृति योग, 12 व्यतीपात योग, 15 पितृपक्ष, 5 अष्टका श्राद्ध, 5 अन्वाष्टका श्राद्ध एवं 5 पुर्वेद्यु: तिथि में श्राद्ध करने को कहा गया है। यहां हमें 16 प्रकार की तिथियों की चर्चा प्राप्त होती है। श्राद्ध पक्ष अर्थात आश्विन कृष्ण पक्ष की 15 और भाद्रपद की पूर्णिमा को लेने पर यहां भी 16 तिथियां प्राप्त होती हैं। इसलिए इस श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। यदि हम अन्य तिथियों में श्राद्ध नहीं कर सकते, तो हमें श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।