भारत की गुलामी के दौरान अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले लोकमान्य तिलक ने देश को स्वतंत्र कराने में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया। वे जनसेवा में त्रिकालदर्शी, सर्वव्यापी परमात्मा की झलक देखते थे। “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है मैं इसे लेकर रहूंगा” के उद्घोषक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का स्थान स्वराज के पथगामियों में अग्रणीय है। उनका महामंत्र देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी तीव्रता के साथ गूंजा और एक अमर संदेश बन गया।
यह एक अद्भुत संयोग है कि तिलक 1856 के विद्रोह के वर्ष में तब उत्पन्न हुए जब देश का सामान्य वातावरण अंग्रेजी राज्य के विरूद्ध विद्रोह की भावना से पूर्ण था। महानायक तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को शिवाजी की कर्मभूमि महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश के रत्नागिरि नामक स्थान पर हुआ। तिलक का वास्तविक नाम केशव था। तिलक को बचपन में बाल या बलवंत राव के नाम से पुकारा जाता था। तिलक के पिता गंगाधर राव प्रारम्भ में अपने कस्बे की स्थानीय पाठशाला में एक शिक्षक थे। बाद में थाने तथा पूना जिले में सरकारी स्कूलों में सहायक इंस्पेक्टर बन गये। पिता के सहयोग के फलस्वरूप वे संस्कृत, गणित और व्याकरण जैसे विषयों में अपनी आयु के बालकों में बहुत आगे थे। मेधावी होने के कारण उन्होनें दो वर्षों में तीन कक्षाएं भी उत्तीर्ण कीं।