लखनऊ में निर्दोष कश्मीरियों को पीटने वाले भगवा धारियों का शुक्रिया !
पहली बार लगा कि कश्मीर की समस्या सुलझ जायेगी। आम इंसानों ने इनके हल का फार्मूला ढूंढ लिया है। ये फार्मूला नकारात्मकता की जमीन पर पैदा हुए सकारात्मकता के बीज में नजर आया। लखनऊ में कश्मीरी मेवे वालों को हंटर जड़ने वाले भगवा धारी नकारात्मक चरित्रों के कृत्य से बात शुरू करते हैं। जिनकी नादानी के अंधेरे में समझदारी की रौशनी की किरण रौशन हो गई।
‘कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता’। वो बेचारे जेल मे हैं। दुनियां उनपर थूक रही है। हर तरफ उनकी आलोचना हो रही हैं। सारा भारत उनके खिलाफ दिखा। भाजपा सरकार भी उनको लेकर सख्त हुई। लखनऊ जिला प्रशासन ने भी उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की। पुलिस ने उनपर तमाम धाराएं लगाकर उन्हें जेल में ठूस दिया। जिस पार्टी और जिन हिन्दूवादी संगठनों से वे जुड़े थे उन्होंने भी उनसे किनारा कर लिया। पुलवामा में सैनिकों की शहादत के बाद पूरा देश चंद गद्दार कश्मीरियों को लेकर आग बबूला था। दरअसल ये गुस्सा नफरत के खिलाफ था। हिंसा के खिलाफ था। नहीं तो लखनऊ में चंद निर्दोष गरीब-मेहनतकश कश्मीरियों पर दो चार लाठियां जड़ने वाले दो-चार भगवा धारियों पर देश गुस्से में नहीं आता।
अब मेवा बेचने वाले निर्दोष कश्मीरियों पर मोहब्बतें लुटाने के लखनऊ की तहज़ीब पलकें बिछाये हैं। कश्मीरियों की पिटाई के खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस कश्मीरियों को सुरक्षा का आश्वासन दे रही है। जिलाधिकारी और अहले लखनऊ इन्हें आर्थिक सहायता का चैक दे रहे हैं। कश्मीरियों को दो-चार हाथ और दो चार हंटर जड़ने वालों के मन की नफरत ने गुंडागर्दी की हो, ये जरूरी नहीं। हो सकता है ये बेरोजगार भगवा धारी राजनीति में जगह पाने के लिए लाइम लाइट में आने के लिए ये नादानी कर बैठे हों। इन्हें पता है कि सियासत में जगह पाने के लिये कुछ खास जरूरत होती हैं। बड़े राजनेता का बेटा होना। नफरत की आंधी में नफरत का सहारा लेकर आगे बढ़ जाना। करोड़पति होना। सेलीब्रिटी होना। या किसी शिगूफे के माध्यम से मीडिया के जरिए लाइम लाइट में आकर पार्टी में जगह पाना।
इनमे से कुछ भी ना हो तो मीडिया की खुराक बनने के लिए किसी शिगूफे का सहारा लेना पड़ता है। पुलवामा हमले के बाद लोगों में कश्मीरी आतंकवादियों/अलगाववादियों पर गुस्सा था। बस इस मौके का फायदा उठाते हुए प्लाट तैयार किया गया। लखनऊ के डालीगंज इलाके में मेवा बेचने वाले कश्मीरी युवकों को पीटते हुए भगवा धारियों ने खुद इस घटना का वीडियो भी तैयार किया। यानी आ बैल मुझे मार। ताकि मीडिया को उसकी पसंदीदा नकारात्मक और हिंसक खुराक आसानी से परोसी जाये। सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल हो। इसके साथ ही वीडियो के सुबूत और शिनाख्त के आधार पर पुलिस गिरफ्तार भी कर ले। खबरों का सिलसिला चलता रहे। नफरत की दुकानों नुमा ये किसी राजनीतिक तक की नजर में आ जायें और पार्टी में जगह मिल जाये।
अब सियासत में इन्हें जगह मिलेगी या नहीं ये तो वक्त बतायेगा लेकिन इनकी इस हरकत से कश्मीर की जटिल समस्या के समाधान का एक फार्मूला जरूर नजर आने लगा।
लखनऊ में कश्मीरियों को पीटे जाने की घटना के बाद आम नागरिकों ने एकमत होकर एक नारा दिया है जो सोशल मीडिया में बुलंद हो रहा है-
” कश्मीर भी हमारा है और कश्मीरी भी हमारे है। “
इस तरह की बात आपने कभी नहीं सुनी थी शायद इसलिए ही दशकों से कश्मीर की आंतरिक कलह, अलगाववाद और आतंकवाद का समाधान नहीं निकल पाया रहा था। कश्मीरी भी हमारे हैं.. जैसी फीलिंग ही शायद अब कश्मीर समस्या का फार्मूला बन कर आशा की किरण बन कर चमकने लगे।
दरअसल कोई भी घर, कोई भी मोहल्ला/कालोनी/बस्ती, कोई भी गांव, कोई भी शहर, कोई भी सूबा और कोई भी राष्ट्र कुछ भी नहीं, उसका अस्तित्व उसमें बसे लोगों से हैं। शहर, सूबा या देश तब हमारा है जब उसके लोग हमारे होंगे। उसे जीतने के लिए उसपर बसे लोगों का दिल जीतना होगा। राष्ट्रवाद.. राष्ट्रवाद.. करने वाले तमाम कथित राष्ट्रवादियों को भी ये समझना होगा कि राष्ट्र भी किसी पत्थर, पेड़, पहाड़, जमीन, आसमान, घास या किसी ठूठ का नाम नहीं। राष्ट्र में बसे लोगों से राष्ट्र है। राष्ट्र में हर जाति, समुदाय.. धर्म.. प्रांत के लोगों से परस्पर सद्भाव और प्रेम ही राष्ट्रप्रेम है।
कश्मीर हमारा है ये शाश्वत सत्य है। लेकिन जिस दिन हम एक एक कश्मीरी को अपना कहने लगेंगे उस दिन से ही कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद के स्याह अंधेरे छंटने लगेंगे। और पाकिस्तान की साजिशें और नापाक मंसूबे नेस्तनाबूद हो जायेंगे।
-लेखक नवेद शिकोह यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं ।