चाहते हैं संतान सुख तो अपनाएं ये जरूरी नियम, खुल जाएगी आपकी किस्मत
ऋषियों ने पहले ही संतान प्राप्ति के नियम (Progeny Rules) और संयम आदि निर्धारित किये थे. जिस प्रकार पृथ्वी पर उत्पत्ति और विनाश का क्रम हमेशा से चलता रहा है. ये आगे भी ये नियमित रहेगा. उसी प्रकार इस क्रम में जड़ चेतन का जन्म होता है. फिर उसका पालन होता है इसके पश्चात विनाश होता है.
पुरातन काल के लोग उपरोक्त नियम.संयम से संतान.उत्त्पति किया करते थे. सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10.15 मिनट लेटे रहना चाहिए एकदम से नहीं उठना चाहिए तथा वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि रुक जाती है इस समस्या के पीछे की वास्तविकता.क्या है इसका शास्त्रीय और ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है.इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप करे.
पति.पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें.
संतान प्राप्ति का गोपाल मन्त्र-
” ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं
कृष्ण त्वामहं शरणं गतः .”
इस मंत्र का बार रोज 108 जाप करे और मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें. अपने कमरे में श्री कृष्ण भगवान की बाल रूप की फोटो लगाये या लड्डू गोपाल को रोज माखन मिसरी की भोग अर्पण करे. कई बार प्रायः देखने में आया है की विवाह के वर्षो बाद भी गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार.बार गर्भपात हो जाता है, ज्योतिष में इस समस्या या दोष का एक प्रमुख कारण पति या पत्नी की कुंडली में संतान दोष अथवा पितृ दोष हो सकता है या घर का वास्तुदोष भी होता है, जिसके कारण गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार.बार गर्भपात हो जाता है.
पुत्र प्राप्ति के लिए गणपति मन्त्र-
श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर इस मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है.
‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:’
पुत्र प्राप्ति के लिए शीतला षष्ठी व्रत
माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता हैकहीं.कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार.पूर्वक पूजन करना चाहिये. इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है.
शीतला षष्ठी व्रत कथा-
एक ब्राह्मण के सात बेटे थे. उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी. एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र.वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया. उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया. वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई. एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया. भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया. उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा. वह चौंक पड़ी. उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था. ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी. जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं. वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी. पड़ोसी जाग गये. उसे पड़ोसियों ने बताया. ”ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है.”
ऐसा सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई. रोती.चिल्लाती वन की ओर चल दी. रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली. वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी. पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है. वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी. अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा. ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया. उसकी ज्वाला शांत हो गई. शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया.
ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ. वह बार.बार क्षमा मांगने लगी. उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की. शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया. ब्राह्मणी ने वैसा ही किया. उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे. तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ. ऐसी मान्यता है.