महात्मा गांधी की हत्या की खबर ब्रेक करने वाले रिपोर्टर ने रोते हुए लिखी थी रपट
शैलेन चटर्जी बापू की हत्या के दौरान घटना स्थल पर ही मौजूद थे
सुरेन्द्र किशोर –
महात्मा गांधी को गोली लगने की खबर जब यू.पी.आई. संवाददाता ने दिल्ली के बिड़ला भवन से अपने दफ्तर को दी तो उधर से उल्टे सवाल आया, ‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ?’ सवाल करने वाले वरिष्ठ पत्रकार पी.डी.शर्मा ने कहा, ‘ऐसा नहीं हो सकता. बापू को भला कौन मार सकता है ?’ पर वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना तो हो चुकी थी और, उस घटना की खबर सबसे पहले दुनिया को देने का श्रेय मिला न्यूज एजेंसी यूनाइटेड प्रेस ऑफ इंडिया के संवाददाता शैलेन चटर्जी को. वे लंबे समय से लगातार गांधी जी के साथ रह रहे थे. एजेंसी ने उन्हें उसी ड्यूटी पर लगाया था. युवा पत्रकार शैलेन ने रोते हुए अपनी वह रपट लिखी थी. करीब बीस साल पहले शैलेन चटर्जी से मशहूर पत्रकार त्रिलोक दीप ने उस ऐतिहासिक घटना के बारे में विस्तार से बातचीत की थी. शैलेन चटर्जी द्वारा वर्णित वह आंखों देखा हाल ‘धर्मयुग’ में छपा था.
चटर्जी के शब्दों में, ‘उस दिन सरदार पटेल से मुलाकात के बाद जब बापू बाहर निकले तो मैंने उनसे पूछा, ‘बापू…मुझे वे एक तरफ करते हुए बोले, इस समय मुझे बहुत देर हो गई है, मैं बात नहीं करना चाहूंगा. अगर मैंने बात की तो भगवान माफ नहीं करेगा मुझे.’ यह कह कर वे तुरंत प्रार्थना सभा की ओर चल दिए. इस बीच मुझे यू.पी.आई. ऑफिस से निर्देश मिला कि सरदार बहुत दिनों के बाद गांधी जी से मिले हैं, सरदार पटेल से मिलकर पता लगाओ कि गांधी जी के साथ उनकी क्या-क्या बातें हुईं ? गांधी जी प्रार्थना सभा की ओर चले गए और मैं सरदार पटेल से बातचीत करते-करते उनकी गाड़ी तक गया. सरदार ने कुछ बताया नहीं. सिर्फ इतना ही बोले, ‘बापू से मिलना होता नहीं, मैं मिलने चला आया. सिर्फ मेल-मुलाकात थी. कोई खास बात नहीं हुई.’
सरदार पटेल गाड़ी में बैठकर चले गए और मैं प्रार्थना सभा की तरफ आया. थोड़ी दूर पहुंचने पर मुझे गोली चलने की आवाज सुनाई दी. मैं भागकर महात्मा गांधी के करीब पहुंचा. गांधी जी नीचे पड़े थे. लोग उन्हें उठा कर भीतर ले जा रहे थे. उनकी दोनों पोतियां मनु और आभा सुबक रही थीं. मैंने भी गांधी जी को उठाने में मदद की. हम लोग उन्हें बिड़ला भवन के एक कमरे में ले गए. पहले मैंने सोचा कि उपवास से कमजोर हो जाने के कारण गिर गए होंगे. जब हम लोग गांधी जी को कमरे में ले जा रहे थे तो पीछे से किसी को कहते सुना कि बापू को किसी ने गोली मार दी है. मैंने तुरंत अपने दफ्तर को फोन किया. यह खबर देने वाला मैं पहला पत्रकार था. मेरा टेलिफोन उठाया पी.डी.शर्मा ने. आज वे जीवित नहीं हैं. लेकिन वे बहुत बड़े पत्रकार थे. आरंभिक अविश्वास के बाद शर्मा ने रिसीवर हमारे चीफ चारुचंद्र सरकार को थमा दिया. उन्हें भी बताया कि बापू को गोली मार दी गई है. उन्हें एक कमरे में रखा गया है. डॉक्टरों को बुलाया गया है.
उन दिनों टेलिफोन आज की तरह काम नहीं करते थे. लिहाजा चारुचंद्र सरकार ने डाकखाने से विशेष वाहक द्वारा तार अपने हेड ऑफिस भिजवाया. शैलेन चटर्जी के अनुसार, ‘मैं अपने दफ्तर को सूचित करने के बाद उस कमरे में गया जहां गांधी जी को रखा गया था. उस समय तक जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार पटेल आदि सभी महत्वपूर्ण लोग पहुंच गए थे. नेहरू जी गांधी जी के पांव के पास जार जार रो रहे थे. उनके बगल में लार्ड माउंटबेटन, लेडी माउंटबेटन और मौलाना आजाद थे. डॉक्टरों ने बारीकी से गांधी जी के शरीर की जांच की. सभी डॉक्टरों ने सिर हिला कर बता दिया कि गांधी जी अब नहीं रहे. चारों तरफ गांधी के निधन की खबर फैल गई. बेइंतेहा भीड़ उमड़ पड़ी. लोग पागल हो रहे थे. कोई गांधी जी का पैर पकड़ कर रो रहा था तो कोई उनका हाथ पकड़ कर खींचे जा रहा था. मैं सब कुछ पास खड़ा देख रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था कि लोगों को काबू नहीं किया गया तो लोग बापू के शरीर को नोंच-नोंच कर उनके शव को क्षत-विक्षत कर देंगे. शव को मकान की छत पर रख दिया गया ताकि लोग दर्शन कर सकें.
मैं अकेला पत्रकार था जो बापू के कमरे में रहा. हिंदू रीति रिवाज के अनुसार बापू को रात ढाई बजे को नहलाया गया. मैंने देखा कि बापू को जो गोली लगी थी, वह उनकी पीठ से होकर बाहर निकल गई थी. कुल तीन जख्म थे. मैं भी खूब रोया. बापू से मुझे बहुत लगाव था. मैंने उनके साथ चार साल साए की तरह सारे भारत की यात्रा की थी. मैं सिर्फ पत्रकार का ही काम नहीं करता था, बल्कि उनके भाषणों का बांग्ला और अंग्रेजी में अनुवाद भी किया करता था. शैलेन चटर्जी ने पहले का एक दिलचस्प वाकया भी सुनाया, ‘ हम पटना में थे. बापू सुबह डॉ. सैयद महमूद के यहां खाना खा रहे थे. मैं सर्चलाइट और इंडियन नेशन में से कुछ महत्वपूर्ण खबरें उन्हें पढ़कर सुना रहा था. इतने में अनुग्रह नारायण सिंह, जो बिहार के बड़े नेता थे, आए. उनके साथ दिल्ली से कोई और व्यक्ति भी था. उन्होंने कहा कि बापू , माउंटबेटन ने आपके लिए सीलबंद पत्र भेजा है. बापू ने उसमें कोई दिलचस्पी नहीं ली. बोले, ठीक है यहां रख दीजिए. वे पत्र रख कर चले गए. इस पत्र ने मेरे दिमाग में खलबली मचा दी.
बापू मेरी परेशानी भांप गए. बोले, अब यह लिफाफा खोलो. पर हाथ से नहीं कैंची से. भीतर एक पत्र मिला. बापू ने उसे पढ़ने के लिए कहा. माउंटबेटन ने लिखा था कि आपके काम को देखते हुए मेरा यह कर्तव्य है कि मैं आपसे मिलूं और स्वयं आपके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करूं. लेकिन मैं स्वयं इतना व्यस्त हूं कि खुद हाजिर नहीं हो सकता. इसलिए मैं आपके लिए एक ट्रेन भेज रहा हूं. जिसमे सवार होकर आप कृपया दिल्ली आएं.
इस पत्र को सुनने के बाद बापू ने कहा कि ठीक है मैं जवाब दे दूंगा. बापू ने मुझसे कहा कि इस खबर को मत छापना. क्योंकि माउंटबेटन सोचेंगे कि खबर मेरे यहां से लीक हो गई है. एक पत्रकार के नाते मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण समाचार था. अपने पर काबू पाने में मुझे बहुत मुश्किल हो रही थी. मैं सारी रात बिस्तर पर छटपटाता रहा. उधेड़बुन में रहा. सुबह जब गांधी जी गंगा के किनारे टहल रहे थे तो मैंने उनसे कहा कि मुझे रात भर नींद नहीं आई. उन्होंने पूछा क्यों ? मैंने कहा कि क्या मैं पत्रकार का कर्तव्य निभा रहा हूं ?
मेरे पास इतनी बड़ी खबर है लेकिन मैं उसे दे नहीं पा रहा हूं. गांधी जी मुस्कराए और बोले, ‘मैं तुम्हारे मन की व्यथा समझ रहा हूं. लेकिन याद रखो तुम मेरे विश्वासपात्र हो. इसलिए मैंने वह पत्र तुम्हें देखने को दिया. मैं नहीं चाहता कि यह पत्र हमारे यहां से लीक हो…
– साभार