अलीगढ़ में पाकिस्तानी टिड्डियों के हमले की आशंका, किसान भयभीत, हाईअलर्ट
अलीगढ़ । पाकिस्तान और भारत के पंजाब प्रांत से राजस्थान होकर टिड्डियों का प्रकोप राजस्थान से सटे राज्यों की ओर बढ़ रहा है। जिले में पाकिस्तान से आई इन टिड्डियों के हमले की आशंका पर हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। कृषि विभाग की टीमें सक्रिय हो गई हैं तो डीएम ने एडवाइजरी जारी कर किसानों को हमले से बचाव के इंतजामों की जानकारी दी है।
अफ्रीका से भारत आती हैं टिड्डी
ग्रीष्म मानसून के समय टिड्डी अफ्रीका से भारत आती हैं और पतझड़ के समय ईरान और अरब देशों की ओर चली जाती हैं। इसके बाद सोवियत, मिस्र व इजराइल में फैल जाती हैं। कुछ भारत एवं अफ्रीका लौट आती हैं।
लक्षण
-पेड़ों के पत्ते रातो रात कम होना
-पत्तों का रंग बदलना
-पत्ते पीले पड़ जाना
क्या है टिड्डी –
टिड्डी ऐक्रिडाइइडी परिवार के आर्थोप्टोरा गण का कीट है। जो हेमिप्टेरा वंश का है। इसे लघु शृंगीय टिड्डा भी कहते हैं। संसार में इनकी केवल छह प्रजातियां पायी जाती हैं। इनकी उड़ान दो हजार मील तक होती है। मादा टिड्डी मिट्टी में कोष्ठ बनाकर रहती है। प्रत्येक कोष्ठ में 20 से 100 अंडे रखती है। गरम जलवायु में दस से बीस अंडे रोज फूट जाते हैं। इसका भोजन वनस्पति है। यह चार से छह सप्ताह में वयस्क होती है। इस अवधि में यह चार से छह बार इसकी त्वचा बदलती है। वयस्क टिड्डियों में 10 से 30 दिन में प्रौढ़ता आ जाती है, तभी यह अंडे देती हैं।
एयरक्राफ्ट के इस्तेमाल पर विचार –
अंग्रेजों के शासन में वर्ष 1902 में टिड्डियों ने आफत मचाई थी। उस समय बांबे के पास ट्रांबे में आम के बगीचे एवं सब्जी की फसल नष्ट कर दी थी। 1929 में टिड्डियों के हमले को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेज हुक्मरानों ने एयरक्राफ्ट के इस्तेमाल पर विचार किया। लेकिन टिड्डियों के इंजन में घुसकर उसे ब्लाक कर देने एवं पायलट की जान के जोखिम को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया।
किसानों को दिए यह सुझाव –
- हमले से पूर्व ही विषैली औषधियों का छिड़काव
- बेंजीन हेक्साक्लोराइड मिश्रण से भीगी गेहूं की भूसी का फैलाव
- शाम के समय खेतों में ध्वनि उत्पन्न कर इन्हें बैठने न देना
- फसल के चारों ओर मशाल जलाकर प्रकाश करना
- प्रकोप होने पर मिथाइल पैराथियान की 25-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर में छिड़काव