इण्डिया इस्लामिक कल्चरल सेन्टर, (आई०आई०सी०सी०), नई दिल्ली का एक महत्वपूर्ण सम्मनित बौद्धिक स्थान है। यह वह जगह है जहाँ आज हिन्दुस्तान के उन लोगों के साथ चर्चा कर सकते ह ।तो मुस्लिम समाज में एक महत्वपूर्ण और सम्मानित स्थान रखते है। यहाँ बुद्धिजीवी, लेखक, कवि, राजनीतिज्ञ कलाकार और दार्शनिक व्यक्ति मिल कर सकारात्मक चर्चायें करते है और इसे भारतीय मुस्लिम समाजों का बौद्धिक बैरोमीटर भी कहा जासकता है। इस सस्थांन की स्थापना के पीछे पूरा एक इतिहास छिपा है जो न केवल यह बताता है कि भारतीय मुसलमान अपने बौद्धिक स्तर को ऊचाँ उठाने, अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने और अपने धर्म की उचित एवं सही व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए ही चिन्तित नहीं थे बल्कि स्वंय भारत सरकार भी इसी ओर कृत सकलंप थी।
विश्व मुस्लिम इतिहास में 14वीं हिजरा का पूरा होना एक महत्वपूर्ण घटना थी। भारत मुसलमानों की आबादी के हिसाब से विश्व में दूसरा सब से बड़ा देश है। इसलिए भारत में भी 14वीं हिरा के पूरी होने पर बड़े पैमाने पर समारोह आयोजित करने का निर्णय भारत सरकार ने लिया। भारत सरकार ने इस समारोह को आयोजित करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जिसका अध्यक्ष न्यायविद एक हिदायतउल्ला को नियुक्त किया गया। स्वंय तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमति इन्दिरा गान्धी ने 3 नवम्बर 1980 को 14वीं हिजरी पूरी होने पर एक डाक टिकट जारी किया। इसी क्रम में कई अन्य समारोह भी अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किए गए जिनमें ‘‘भारत के सन्दर्भ में विश्व में इस्लामिक योगदान विषय पर एक अन्तराष्ट्रीय स्तर की गोष्ठी तथा अन्तराष्ट्रीय किरात प्रतियोगिता मुख्य है।
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उक्त समारोहों के आयोजित के समय कई सम्मानित व्यक्तियों ने नई दिल्ली में एक इस्लामिक केन्द्र की स्थापना की आवश्क्ता पर बल दिया। इस सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों के अलावा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व छात्रों ने सकारात्मक योगदान किया। अप्रैल 1981 में इण्डिया इस्लामिक कल्चरल सेन्टर को एक सोसाईटी के रूप में पजीकृत कराया गया जिस पर मूल हस्ताक्षर करने वालों में हकीम अब्दुल हमीद साहब थे जिन्हें प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसी प्रकार बदरूद्दीन तय्यब जी आई०सी०एस० को निर्देशक सैयद एस शफी को संयुक्त निर्देशक, चौधरी मोहम्मद आरिफ को सचिव तथा एम०डब्लु०के० यूसुफजई को कोषाध्यक्ष नियक्त किया गया, बेग़म आबिदा अहमद को सदस्य नामित किया गया।
भारत सरकार ने लोधी मार्ग पर 8000 वर्ग मीटर जमीन केन्द्र के नाम ज़मीन आबंटित की तथा इन्सटियूट ऑफ इस्लमिक स्टैडीज ने 10,5000 रूपये जमीन की कीमत के लिए प्रदान किये। भारत सरकार के सांस्कृतिक विभाग द्वारा इमारत के निर्माण के लिए 10 लाख रूपये को अनुदान दिया गया। नई दिल्ली म्यूनिसिपल काऊन्सिल द्वारा इमारत के निर्माण को अनुमति प्रदान करने के उपरान्त जनवरी 1996 में वर्तमान इमारत के निर्माण शुरू हुआ। बेग़म आबिदा अहमद की अध्यक्षता में एक नए ट्रस्टी बोर्ड का 1994 में गठन किया गया और योजना आयोग के अध्यक्ष फजल अहमद ने आई०आई०सी०सी० के प्रथम निदेशक के रूप में कार्यभार सम्भाला उनके बाद भारत सरकार के पूर्व सचिव मूसारजा ने निर्देश्क के रूप में केन्द्र को नए आयाम दिए। इसी समय आई०आई०सी०सी० ने फारेन कन्ट्रीब्यूशन रेगूलेशन एक्ट 1976 से छूट प्राप्त की तथा इन्कम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 80 (जी) (5) के अन्तर्गत पंजीकरण कराया।
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अपनी स्थापना और पूर्ण रूप से संचालित होने के उपरान्त आई०आई०सी०सी० देश तथा समाज की सेवा के इतिहास में एक नए अध्याय को आरम्भ किया। इसका एक महत्वपूर्ण और मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म को अपने मूल स्वरूप में प्रस्तुत करना तथा भारतीय सभ्यता में उसकी सकारात्मक भागीदारी को प्रस्तुत करना था। समय गुजरने के साथ साथ आई०आई०सी०सी० प्रगति और उन्नति के नए आयाम स्थापित करना गया। वर्तमान प्रशासनिक तन्त्र के आधीन आई०आई०सी०सी० ने और भी प्रगति की तथा वंचित तथा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए छात्रों के लिए कार्यक्रम आरम्भ किए। हालाँकि आई०आई०सी०सी० की उसकी इमारती सुन्दरता और अतिथि सत्कार के लिए काफी तारीफ की जाती है परन्तु वह अपनी स्थापना के मूल उद्देश्यों को प्राप्त करने में अभी काफी पीछे है। अपने मूल उद्देश्यों को जम़ीनी हकीकत में बदलने के लिए अभी आई०आई०सी०सी० को काफी काम करने की आवश्यक्ता है।
इस समय आवश्यक्ता यह है कि केन्द्र भारत की साझी विरासत को बचाने और उसे जन समुदाय के समक्ष सही रूप में प्रस्तुत करने की दिश में कार्य करे। वर्तमान समय के मीडिया की एक महत्वपूर्ण भूमिका है और यदि केन्द्र अपनी गतिविधियों तथा भारतीय मुसलमानों की समस्यायों पर आधारित एक पत्रिका का प्रकाशन करे तो वह न केवल केन्द्र के लिए एक सकारात्मक कदम होगा बल्कि नीति निर्माताओं को भी एक दिशा प्रदान करेगा। इस समय केन्द्र की कैन्टीन की दशा पारदर्शी एवं उचित नहीं रही जा सकती और उसकों उच्चीकृत किए जाने की नितक्त आवश्क्ता है। केन्द्र के सदस्यों की बैठक वर्ष में दो बार बुलाई जानी चाहिए ताकि गहन रूप से समस्यायों पर चर्चा की जा सके तथा भाविष्य के लिए कार्यक्रम बनाए जा सके। इसी प्रकार आई०आई०सी०सी० किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों अथवा योगदान करने वालों को पुरस्कार भी प्रदान कर सकती है जो न केवल उनका मनोबल बढ़ायेगा बल्कि स्वंय केन्द्र को भी भारत की मुख्य धारा में एक सांस्कृतिक एवं बौद्धिक आधार प्रदान करेगे। मुस्लिम समाज केन्द्र यूवाओं को इस्लाम और इस्लामिक इतिहास तथा संस्कृति के प्रति जागरूक करने की आवश्यक्ता है।
आई०आई०सी०सी० को चाहिए कि वह भारतीय मुसलमानों के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए कार्य करे। केन्द्र से बड़ी संख्या में व्यापारी तथा उद्यामि जुड़े हुए है और इस लिए आवश्यक्ता इस बात की भी है कि केन्द्र एक मुस्लिम चैम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्री का भी गठन करे ताकि मुसलमान व्यापारियों और उद्यामियों की समस्यायों को और भी प्रभावी रूप से उठाया जा सके। केन्द्र की आय और खर्च का मासिक विवरण किया जाना चाहिए ताकि किसी भी सदस्य को किसी प्रकार की शंका पैदा न हो सके। केन्द्र के हास्टलों की दशा सुधारा जाना चाहिए। दिल्ली के बाहर के सम्मानित सदस्य केन्द्र में आते है और उनके साथ कार चालक तथा सुरक्षा गार्ड होते है। उन कार चालकों तथा गनरों के लिए केन्द्र में किसी प्रकार की व्यवस्था आज भी नहीं हैं। इस लिए डोरमेटिरीज का निर्माण होना चाहिए था ताकि वे भी उचित रूप से रह सके। यह इस्लाम की शिक्षा के अनुरूप एक मानवीय कार्य होगा जो आज तक नहीं किया गया।
अपनी स्थापना के बाद अब तक आई०आई०सी०सी० ने एक लम्बी यात्रा की है परन्तु अभी इसे और भी आगे जाना है। अब समय आ गया है जब केन्द्र के प्रशासक, सम्मानित सदस्य तथा वह सभी लोग जो किसी न किसी रूप में इससे जुड़े है यह सोचें कि किस प्रकार केन्द्र को और भी प्रगति पथ पर अग्रसर किया जाए। भाविष्य में इतिहासकार या तो यह लिखेगे कि आई०आई०सी०सी० ने भारतीय सभ्यता में सकारात्मक योगदान दिया अथवा विपरीत लिखेगें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आई०आई०सी०सी० इस समय हमारे पास अपनी अगली नस्ल की आमानत है और इतिहासकार क्या लिखेगे यह हमारे कार्यों पर निर्भर करता है। अतः अब हम सभी को इसकी प्रभावी प्रगति एवं उन्नति के विषय में गहन विचार विर्मश करना चाहिए।
आवश्यक्ता इस बात की भी है कि भारतीय मुस्लिम समाज के यूवाओं मुख्य रूप से केन्द्र के यूवा सदस्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में प्राथमिकता दी जाय। यह न केवल समय की आवश्यक्ता है बल्कि स्वंय केन्द्र को और भी प्रभावी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यूवा सदस्यों को प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने का आवसर प्राप्त होना चाहिए जो उन्हें और भी साम्माजिक कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा।
– लेखक जसीम मोहम्मद, आईआईसीसी के आजीवन सदस्य है और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व मीडिया सलाहकार हैं |