राजा भैया ने बनाई नई पार्टी, अखिलेश के लिए बड़ा खतरा !
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने शुक्रवार को लखनऊ में अपनी नयी पार्टी का औपचारिक ऐलान करते हुए कहा कि एससी/एसटी कानून और पदोन्नति में आरक्षण का विरोध पार्टी का मुख्य मुद्दा होगा। उनकी पार्टी का नाम जनसत्ता पार्टी हो सकता है। उन्होंने बताया कि जनसत्ता पार्टी, जनसत्ता लोकतांत्रिक पार्टी और जनसत्ता दल तीन नाम चुनाव आयोग को भेजे गए हैं। पार्टी के चुनाव चिह्न के लिए भी आयोग को पत्र लिखा गया है। आयोग ने अभी तक दोनों में से किसी पर मंजूरी नहीं दी है। अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान शुक्रवार को राजा भैया ने कहा कि वह लगातार छठी बार निर्दलीय विधायक चुने गए हैं। क्षेत्र की जनता की मांग पर वह अब अपनी पार्टी बना रहे हैं। पार्टी जल्द ही रैली आयोजित करेगी। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजा भैया के पार्टी बनाने से अखिलेश यादव की चुनौती बढ़ेगी | अखिलेश यादव के बड़े वोट बैंक में सेंधमारी राजा भैया कर सकते हैं |
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उन्होंने कहा कि चूंकि पार्टी के नाम और चिह्न पर फैसला नहीं हुआ है, ऐसे में लोकसभा चुनाव, 2019 लड़ने पर अभी कुछ तय नहीं हुआ है। ‘एससी-एसटी कानून’ पर केंद्र को घेरते हुए राजा भैया ने कहा कि यह कदम न्यायोचित नहीं है। इस तरह के मामले में पहले विवेचना, फिर गिरफ्तारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मैं दलित विरोधी नहीं हूं। उनका हिमायती और हमदर्द हूं। लेकिन, साथ ही एससी-एसटी कानून की आड़ में अगड़ी जातियों के उत्पीड़न के खिलाफ हूं।’’ राजा भैया ने कहा, ‘‘इसी तरह पदोन्नति में किसी को जाति के आधार पर नहीं बल्कि उसके काम और योग्यता के आधार पर आरक्षण दिया जाए।’’ गौरतलब है कि राजा भैया का प्रतापगढ़ और इलाहाबाद जिले के कुछ हिस्से में काफी प्रभाव है। उनकी छवि एक दबंग और क्षत्रिय नेता के तौर पर है।
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जनसत्ता पार्टी के जरिए आगे राजनीति की रूपरेखा बना रहे राजा भैया की नजरें अब लोकसभा सीटों पर है। राजनीति की सिल्वर जुबली पूरी कर चुके राजा भैया की योजना पर गौर करें तो वो नई पार्टी बनाकर यूपी की कुछ लोकसभा सीटों को साधने की कवायद में जुट गए हैं। दरअसल अभी तक उनके समाजवादी पार्टी से अच्छे संबंध थे, उस समय उनके करीबियों को उन्होंने कई बार सपा से टिकट दिलाए थे। हालांकि हाल के राज्यसभा चुनाव के बाद से सपा मुखिया अखिलेश यादव उनसे नाराज हैं, ऐसे में उन्हें अपने समर्थकों के लिए सपा या फिर किसी अन्य राजनीतिक दल से टिकट मिलने की संभावना कम नजर आ रही है। इन्ही हालात को देखते हुए उन्होंने नई पार्टी बनाने का फैसला लिया।