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बताओ बच्चों की कब्र पर चढ़कर कौन सी दिवाली मनाओगे ? पढ़िए सालिक यह मार्मिक आर्टिकल-

  • October 26, 2018
  • 1 min read
बताओ बच्चों की कब्र पर चढ़कर कौन सी दिवाली मनाओगे ? पढ़िए सालिक यह मार्मिक आर्टिकल-

प्यारे बेटे अज़ीम अल्लाह तुम्हे जन्नत में आला से आला मुकाम नसीब अता फरमाए, हो सके तो हमें माफ़ करना, हम तुम्हें महफ़ूज़ नही कर पाए हम नफरत का मुकाबला नही कर पाएं, बेशक हम शर्मिंदा हैं’

क्या आपने कभी किसी मदरसे के बच्चों को देखा है? एक बार किसी मदरसे में जाकर ज़रूर देखिएगा। मदरसे में आपको छोटे छोटे मासूम बच्चे पढ़ते-खेलते दिख जायेंगे, ये वो बच्चे होते है जो अपने गरीब माँ-बाप से दूर मदरसे में अपनी पढाई पूरी करने आते है। इन बच्चों की आंखों में मासूमियत तैरती आपको साफ़ झलक जायेगी। ऐसा ही एक 8 साल का मदरसे का मासूम अजीम नफरत की भेंट चढ़ गया। अम्मी-अब्बू के इस दुलारे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा की मदरसे की पहचान और उसका टोपी और लिबास उसकी जान का दुश्मन बन जायेगा। मेवात के मां-बाप के इस लाडले को दिल्ली मालवीय नगर में क़त्ल कर दिया गया यहां क़त्ल शब्द पता नहीं उस दरिंदगी को बयां कर पाएगा जो उस मासूम के साथ हुई थी, मेरे अल्फ़ाज़ उस दर्द को बयां करने की क़ाबलियत नहीं रखते जो आठ साल (पता नहीं इस उम्र को कैसे बयां करूं) की रूह ने झेले।
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ अपने माँ-बाप के कलेजे के टुकड़े को मुस्लिम नफरत में अंधी बहुसंख्यक समाज के लोगो ने पीट पीट कर मार डाला, जिस माँ-बाप ने शायद ही कभी अपने बेटे पर हाथ उठाया होगा उसके बेटे को हैवानों ने जानवरों की तरह पीट पीट कर मार डाला, जिस नफ़रत की सज़ा उस 8 साल के अजीम को दी गई वो शायद ही नफ़रत का मतलब समझता होगा?

कितना ख़तरनाक हो गया है इंसान जो अपनी धार्मिक अदावतों का शिकार बच्चों को बना रहा है, कभी सुना था कि बच्चे सब के सांझे होते हैं, दुश्मन भी बच्चों को बख्श देते हैं लेकिन अजीम की क़त्ल की घटना ने वो सारे भरम तोड़ दिए जो इतने पक्के थे कि जिनपर कहावतें गढ़ी जाती थी मिसालें दी जाती थीं।

धर्म के नाम पर लाशें गिराने वालो आखिर तेरा धर्म कितना कमजोर है जो 8 साल के मदरसे के बच्चे के पढ़ने से खतरे में था? बताओ खून के ये नापाक धब्बे खुदा से कैसे छु़पाओगे, बताओ बच्चों की कब्र पर चढ़कर कौन सी दिवाली मनाओगे?
प्यारे बेटे अज़ीम हो सके तो हमें माफ़ करना, हम तुम्हें महफ़ूज़ नही कर पाए हम नफरत का मुकाबला नही कर पाएं, बेशक हम शर्मिंदा हैं’।

– लेखक सालिक फरीदी युवा स्तंभकार हैं जो समाज से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखते हैं |